तीर्थंकर प्रकृति का बंध कराने वाली सोलह कारण भावनाएं है। जिसमें ‘आवश्यकापरिहाणिं चौदहवीं भावना है। इसका अर्थ है- छह आवश्यक क्रियाओं का सावधानी से पालन करना। सोलह कारण भावनाएं इस प्रकार है- १ दर्शनविशुद्धि २ विनयसंपन्नता ३ शीलव्रतेष्वनातिचार ४ अभीक्ष्णज्ञानोपयोग ५ संवेग ६ शक्ति तस्त्याग ७ शक्तितस्तप ८ साधुसमाधि ९ वैयावृत्यकरण १० अर्हन्त भक्ति ११ आचार्य भक्ति १२ बहुश्रुतभक्ति, १३ प्रवचन भक्ति १४ आवश्यक अपरिहाणि १५ मार्ग प्रभावना १६ प्रवचन वत्सलत्व ।
इस आवश्यका परिहाणि भावना से तीर्थंकर नाम कर्म का बन्ध हो सकता है क्योंकि इसमें शेष कारणों का अभाव भी नहीं है। दर्शन विशुद्धि के बिना छह आवश्यकों में निरतिचारता संभव ही नहीं है।