आवास का अर्थ है निवास स्थान
तिलोय पण्णत्ति ग्रन्थ में लिखा है- ‘दह सलद्रुमादीणं रम्माणं उवरि होंति आवास । णागादीणं केसिं तियणिलया भावमेक्कमसुराणं।’’ रमणीय तालाब, पर्वत और वृक्षादिक के ऊपर स्थित व्यन्तर आदिक देवों के निवास स्थानों को आवास कहते है।
रत्नप्रभा पृथ्वी में भवन द्वीप समुद्रों के ऊपर भवनपुर और द्रह एवं पर्वतादिकों के ऊपर व्यन्तरों के आवास होते है। इस प्रकार देवों के निवास स्थान के भवन, भवनपुर और आवास ३ भेद है रत्नप्रभा पृथ्वी के ३ भाग है- खरभाग, पवंâभाग और अब्बहुल भाग। उसमें से खर भाग में राक्षस जाति के व्यंतर देवों को छोड़कर सात प्रकार के व्यंतर देवों के निवास स्थान है। और भवनवासी के असुरकुमार जाति के देवों को छोड़कर नव प्रकार के भवनवासी देवों के स्थन हैं। रत्नप्रभा के पंकभाग नाम के द्वितीय भाग में असुर कुमार जाति के भवनवासी देव एवं राक्षस जाति के व्यंतरो के आवास स्थान है।