तपश्चर्या को करने वाले मुनि अनेक प्रकार की ऋद्धियों के स्वामी हो जाते हैं। तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ मं ऋद्धियों के आठ भेद है- बुद्धि ऋद्धि, विक्रिया ऋद्धि, क्रिया ऋद्धि, तप ऋद्धि, बल ऋद्धि, औषधिऋद्धि, रस ऋद्धि और क्षेत्रऋद्धि । इसमें रस ऋद्धि के ६ भेद है उसमें पहला भेद आशीर्विष है जिसका लक्षण है- जिस शक्ति से दुष्कर तप से युक्त मुनि के द्वारा ‘मर जाओ’ इस प्रकार कहने पर जीव सहसा मर जावे।
घोराघोर तपश्चरण करने वाले मुनियों के ये ऋद्धियां प्रगट हो जाया करती है। गणधर देव के ये ऋद्धियां तत्क्षण ही उत्पन्न हो जाया करती है। ये ऋद्धियां भावलिंगी मुनियों के ही प्रगट होती है अन्यों के नहीं हो सकती है।