मंगलगोचर क्रिया कब और कैसे करें?
‘‘मंगलगोचरमध्याह्नवंदना योगयोजनोज्झनयोः१।’’
वर्षायोग ग्रहण और समापन के पूर्व दिन मंगलगोचरी-आहार के पहले यह ‘मंगलगोचर मध्यान्ह वंदना’ की जाती है अर्थात् आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी के मध्यान्ह में मंगलगोचर मध्यान्ह देववंदना करके साधुगण आहार के लिए जाते हैं पुनः आहार से आकर ‘मंगलगोचर वृहत्प्रत्याख्यान’ नाम से गुरु के पास उपवासरूप प्रत्याख्यान ग्रहण करते हैं, अनंतर चौदश का उपवास करके रात्रि में वर्षायोग क्रिया करके वर्षायोग ग्रहण कर लेते हैं।ऐसे ही कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन आहार से पूर्व मंगलगोचर मध्यान्ह देववंदना करके आहार के बाद वृहत्प्रत्याख्यान ग्रहण करके चतुर्दशी का उपवास करके चतुर्दशी की पिछली रात्रि में वर्षायोग की निष्ठापना कर देते हैं। इस मंगलगोचर मध्यान्ह वंदना में सिद्ध, चैत्य, पंचगुरु और शांति ये चार भक्तियाँ पढ़ी जाती हैं।मध्यान्ह की देववंदना में चैत्य एवं पंचगुरु ये दो भक्तियाँ की जाती हैं किन्तु उपर्युक्त इन दोनों त्रयोदशी में इसी देववंदना में आदि-अन्त में दो भक्तियाँ बढ़ जाती हैं।यद्यपि शास्त्रों में मध्यान्ह सामायिक के बाद आहार का कथन है फिर भी आजकल आहार के बाद मध्यान्ह की सामायिक-देववंदना की जाती है। जो भी हो, इस मंगलगोचर मध्यान्ह देववंदना को आहार के पहले कर लेने में कोई बाधा नहीं है। इसकी विधि निम्न प्रकार है-