जैसे का तैसा नहीं कहना बल्कि जीव आदि तत्त्वों पर शंका करना आसादना है। जीव आदि पाँच अस्तिकाय, पृथ्वीकायिक स्थावर व दो इन्द्रिय से पाँच इन्द्रिय तक त्रसकाय- इस तरह छह जीवविकाय, अहिंसा आदि पाँच महाव्रत, ईर्या आदि पाँच समिति, व काय गुप्ति आदि तीन गुप्ति-ऐसे आठ प्रवचन माता और जीवादि नव पदार्थ- इस प्रकार ये तेंतीस पदार्थ है। इनकी आसादना के भी ये नाम है। इन पदार्थों का स्वरूप अन्यथ कहना, शंका आदि उत्पन्न करना उसे आसादना कहते हैं। ऐसा करने से दोष लगता हैं इसलिए उसका त्याग करया गया है ।