दिगम्बर साधु संयम की रक्षा हेतु शरीर की स्थिति के लिए दिन में एक बार छ्यालीस दोष-चौदह मल दोष और बत्तीस अंतरायों को टाल कर आगम के अनुकूल नवकोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करते हैं। इसी को पिंडशुद्धि या आहारशुद्धि कहते हैं।