(१) ‘‘क्षुधा१ की वेदना मिटाने के लिए (२) अपनी और अन्य साधुओं की वैयावृत्ति करने के लिए (३) सामायिक आदि आवश्यक क्रियाओं के पालन के लिए (४) संयम पालन के लिए (५) अपने दश प्राणों की चिंता अर्थात् प्राणों की रक्षा के लिए और (६) दश धर्म आदि के चिंतन के लिए मुनि आहार ग्रहण करते हुए भी धर्म का पालन करते हैं।’’ अर्थात् यदि मैं भोजन नहीं करूँगा, तो क्षुधा वेदना धर्मध्यान को नष्ट कर देगी, स्व अथवा अन्य साधुओं की वैयावृत्ति करने की शक्ति नहीं रहेगी, सामायिकादि आवश्यक क्रियाएँ निर्विघ्नतया नहीं हो सकेंगी, षट्कायिक जीवों की रक्षारूप संयम नहीं निभेगा, अपने इंद्रिय, बल, आयु प्राणों की रक्षा के बिना रत्नत्रय की सिद्धि नहीं होगी और आहार के बिना दश धर्मादि का पालन भी वैâसे होगा ? यही सोचकर साधु आहार ग्रहण करते हैं।