दिगम्बर साधु दिन में एक बार खड़े होकर भिक्षावृत्ति से व पाणिपात्र में आहार लेते हैं ।
सूर्य के उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी छोड़कर वा, मध्यकाल में एक मुहूर्त, दो मुहूर्त, तीन मुहूर्त में एक बार भोजन करना एक भक्त मूल गुण है । पर घर में परकर दिए हुए ऐसे आहार को हाथ रूप पात्र पर रखकर वे मुनि खाते है । साधु विधि से अर्थात् नवधा भक्ति दाता के सात गुण सहित क्रिया से दिया गया ही आहार गृहण करते हैं ।
नवधा भक्ति के नाम –
१़ पड़गाहन
२़ उच्यासन
३़ पादप्रक्षालन
४़ पूजन
५़ नमस्कार
६़ मनशुद्धि
७़ वचन शुद्धि
८़ काय शुद्धि
९़ आहार जल शुद्धि ।
दाता के सात गुण –
श्रद्धा भक्तिश्च विज्ञानं पुष्टि: शक्ति रलुब्धता ।
क्षमाच यत्र सप्तैते गुणा: दाता प्रशस्यते ।।
श्रद्धा, भक्ति विज्ञान, सन्तोष, शक्ति, अलुब्धता और क्षमा ये सात गुण जिसमें पाये जाये वह दातार प्रशंसनीय है । साधु आहार के ४६ दोष उद्गम, उत्पादन आदि से रहित आहार गृहण करते हैं ।