अच्छे प्रकार से काय और कषाय को क्रश करना सल्लेखना है ।श्रावक के बारह व्रतों में चौथे शिक्षाव्रत के अंत में सल्लेखना मरण का वर्णन है । सल्लेखना के भेदों मे पण्डितमरण सललेखना हैं
जिसके तीन भेद हैं – भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी व प्रायोपगमन ।
जिस सन्यास में अपने द्वारा किये गये उपकार की अपेक्षा रहती है किन्तु दूसरों के द्वारा किये गये वैयावृत्य आदि उपकार की अपेक्षा सर्वथा नहीं रहती उसे इंगिनी मरण कहते हैं ।
इगिनीमरण के धारक मुुनि पहले तीन संहननों में (वङ्काऋषभनाराच, वङ्कानाराच और नाराच ) से कोई एक संहनन के धारक होते हैं । उनका शुभ संस्थान रहता है । वे निद्रा कोे जीवते हैं । महाबल व शूर रहते हैं ।