प्रथम आदि पृथ्वियों में जिन १३, ११ आदि पटलों का अवस्थान बतलाया गया है उनके मध्य में कितना अंतर है और वह किस प्रकार से प्राप्त होता है उसे स्पष्ट करते हैं-
जिस विवक्षित नरक पृथ्वी में जितने पटल स्थित हैं उन सबके समस्त मोटाई के प्रमाण को तथा पृथ्वी के जितने भाग में उन पटलों का अवस्थान नहीं है ंउसको भी कम करके शेष में एक कम अपनी पटल संख्या का भाग देने से जो लब्ध हो, उतना उन पटलोें के मध्य में ऊर्ध्व अंतर का प्रमाण होता है। जैसे-’प्रथम पृथ्वी के जिस अब्बहुल भाग में प्रथम नरक है-उसकी मोटाई का प्रमाण अस्सी हजार योजन है। चूँकि उसके ऊपर और नीचे हजार-हजार योजन में कोई पटल नहीं है अतएव अस्सी हजार में २ हजार कम करने से ७८ हजार रहते हैं। पुन: १३ पटल के प्रत्येक की मोटाई एक-एक कोस होने से १३ कोस अर्थात् ३-१/४ योजन होती है। इस मोटाई को ७८ हजार योजन में कम करके उसमें १ कम प्रथम नरक के पटल १३ का भाग दे दीजिए उन पटलों के मध्य के अंतर का प्रमाण निकल आएगा।
(८००००-२०००)-(१/४²१३) ´ (१३-१) · ६४९९-३५/४८योजन