सौधर्म इंद्र का ‘वालकु’ नामक यान विमान है। ऐसे ईशान आदि इंद्रों के यान विमान पुष्पक, सोमनस, श्रीवृक्ष, सर्वतोभद्र आदि सुंदर नाम वाले हैं। इनमें से प्रत्येक ‘यानविमान’ १ लाख योजन लम्बे और चौड़े हैं। ये विमान दो प्रकार के हैं-
१. विक्रिया से उत्पन्न, २. स्वभाव से उत्पन्न।
विक्रिया से उत्पन्न हुए यान विमान विनश्वर एवं स्वभाव से उत्पन्न हुए यान विमान, नित्य अविनश्वर हैं। ये यानविमान फहराती हुई ध्वजाओं से रमणीय, आसन शय्या आदि से परिपूर्ण धूपघट, घंटा, चामर आदि से शोभित, वंदनमाला, सुवर्ण, मुक्ता मालाओं से सहित, सुंदर द्वार, वङ्कामय कपाटों से अलंकृत शोभायमान होते हैं।
यान विमान में स्वच्छ भोजन, वस्त्र, आभरण आदि वस्तुयें, विक्रिया जन्य और स्वाभाविक के भेद से दो प्रकार की होती हैं। विक्रिया से उत्पन्न वस्त्रादि विनश्वर एवं स्वभाव से उत्पन्न हुए पृथ्वीकायिक-अविनश्वर होते हैं।
यहाँ सौधर्म इंद्र के परिवार, वैभव आदि का वर्णन किया है। ऐसे ही ईशान इंद्र से लेकर अच्युत इंद्र पर्यंत व्यवस्था है। बस १ परिवार देव, देवियों की संख्या में न्यूनता एवं भवन आदि के प्रमाण में न्यूनता आती गई हैं।