घमण्ड करना । प्रत्येक वह जीव जो रूप , रंग, ऐश्वर्य, बल आदि से युक्त रहता है वह अपने से कम सुन्दर, मध्यमवर्गीय व बलहीन को देखकर इतराता है और यह सोचता है कि मैं कितना सुन्दर हूं मेरे पास कितना पैसा है, मैं सब कुछ करने की सामर्थ्य रखता हूँ लेकिन वह यह नहीं जानता कि कालान्तर में यह इतराना – इठलाना उसे कितना दुख देगा ।
उदाहरण स्वरूप जैसे कोई नारी अत्यधिक रूपवती है उसके समझ कोई सांवली स्त्री आ जाए वो उसकी तुलना करते हुए उसके रूप गुण की तारीफ कर दे तो वह स्वयं पर इतराने लगती है पर जो सुन्दर रूप मिला है वह सुभग नामकर्म के उदय से पुण्योदय से मिला है जो कि इतराने पर आगे दुर्भग नामकर्म में भी बदल सकता है ।
भौंतिकता की चकाचौंध और पाश्चात्य संस्कृति की अंधाधुंध दौड़ में कोई – २ पुत्र जब अत्यधिक धनवान और शिक्षित हो जाते हैं तो पिता की सादगी और कम शिक्षा को अपनी तौहीन समझकर पिता को नौकर, ड्राइवर आदि की संज्ञा देकर सोचते है कि हमने अपनी इज्जत बचा ली लेकिन इस घमण्ड से वह अत्यन्त दु:खदायी कर्म का बन्ध कर लेते हैं ।