भगवान महावीर के प्रथम गणधर इन्द्रभूति हुए है । यह गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे । वेद पाङ्गी थे । इनको अपनी विद्वता पर बड़ा धमण्ड था । जब योग्य शिष्य के अभाव में ६६ दिनों तक भगवान की दिव्यध्वनि नहीं खिरी तब इन्द्र अवधिज्ञान से सारा वृतान्त जान ब्राह्मण का वेश धारण कर गौतम ब्राह्मण को भगवान महावीर के समवसरण में लाया । भगवान महावीर के समवसरण में मानस्तम्भ देखकर गौतम का मानभंग हो गया और ५०० शिष्यों के साथ नम्रीभूत हो दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली तभी इन्हें सातों ऋद्धियां प्रगट हों गयी और यह भगवान के प्रथम गणधर हो गये । और भगवान की दिव्यध्वनि खिर उङ्गी । आपको श्रावण कृष्णा एकम के दिन पूर्वान्ह काल में श्रुतज्ञान का ज्ञान हुआ उसी तिथि को पूर्व रात्रि में आपने अंगो की रचना करके सारे श्रुत को आगम निबद्ध कर दिया ।
कार्तिक कृष्णा अमावस्या को प्रात: काल भगवान महावीर को निर्माण प्राप्त हुआ और सायंकाल आपको केवलज्ञान प्रगट हुआ और विपुलाचल पर आपने निर्वाण प्राप्त किया ।