उन्मार्गगामी दुष्ट घोड़ोे का जैसे लगाम के द्वारा निग्रह करते हैंं वैसे ही तत्त्वज्ञान की भावना से इन्द्रिय रूपी अश्वों का निग्रह हो सकता है । पांचों इन्द्रियों के विषयभूत अमनोज्ञ पदार्थों में तथा स्त्री पुत्रादि जीव रूप और धन आदि अजीव रूप ऐसे मनोज्ञ पदार्थों में राग – द्वेष का न करना ही पांच इन्द्रियोें का संवर या इन्द्रिय जय कहलाता है ।
जो साधु भले प्रकार अनुप्रेक्षाओं का सदा चिन्तवन करता है, स्वाध्याय मेंं उद्यमी और इन्द्रिय विषयों से प्राय: मुख मोड़े रहता है वह अवश्य ही मन को जीतता है ।