इन्साफ का दूसरा नाम है न्याय ।
इसके लिए भारत में न्यायालय बनी हुई हैं वह दो प्रकार की है –
१ हाई कोर्ट – उच्च न्यायालय
२ सुप्रीम कोर्ट – सर्वोच्च् न्यायालय
न्यायालय में एक न्यायाधीश होता है जिसे आम भाषा में जज कहतें है किसी भी उस व्यक्ति को जिसे न्याय की आवश्यकता होती है वकील के माध्यम से वहां जाता है तथा न्याय हेतु अपील करता है दोनों पक्षों के वकीलों में बहस होने के बाद सत्यता सिद्ध होने पर जज उसका इन्साफ करता है । परन्तु कभी -२ उचित सबूत न होने पर गलत व्यक्ति बरी हो जाता है और सही व्यक्ति दण्डित हो जाता है । जिसके लिए कानून को अंधा कानून कहा है प्राचीन काल में इन्साफ देने का कार्य राजा जन करते थे तब राजतंत्र था अब प्रजातन्त्र है अत: न्यायालय की व्यवस्था है । न्याय की देवी हाथ में तराजू लिये रहती है जिसके दोनों पलड़े बराबर रहते हैं तथा देवी की आंख पर काली पट्टी बंधी रहती है जो यह संदेश देती है कि इस दरबार में अपने – पराए का कोई भेद नहीं है तराजू के दोनों बराबर पलड़ो के समान सभी को समान न्याय मिलेगा ।
तब नाभिराय आदि कुलकरों ने दण्ड व्यवस्था निर्धारित की थी जो मात्र इस प्रकार थी । ‘हा’ – हाय तुमने यह क्या किया । कुछ अधिक दोष करने पर ‘मा’ अब ऐसा मत करना और उससे अधिक गलती पर ‘धिक’ तुम्हें धिक्कार हो इतने मात्र से ही प्राणी कभी गलत नहीं करते थे परन्तु आज जब सर्वत्र इतनी हिंसा, अत्याचार, वैमनस्य, लूटपाट, आतंकवाद बढ़ गया है तब सजाएं भी उसी हिसाब से बढ़ गयी हैं ।
एक इन्साफ और भी है जो व्यक्ति को अपने कर्माश्रित फल को प्रदान करता है अर्थात् इस न्यायालय में भले ही दोषी कभी सजा से बच पाए पर कर्मों की अदालत में व्यक्ति सदैव इन्साफ पाता है वह जैसा कर्म करता है वैसे ही फल को भोगता है ।