कदाचित् ये देव जातिस्मरण, देव ऋद्धि दर्शन, जिनबिम्ब दर्शन और धर्म श्रवण के निमित्तों से सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेते हैं।
जातिस्मरण—कदाचित् इन देवों में से किसी को जातिस्मरण हो कर कई-कई भवों के पाप-पुण्य, कृत्य स्मृति में आ जाते हैं। तब ये पाप-भीरू होकर पापों की एवं मिथ्यात्व की आलोचना करते हुए सम्यक्त्व को ग्रहण कर लेते हैं।
देव ऋद्धि दर्शन—कदाचित् कोई देव अपने से महान विभूतियों को अन्यदेवों के पास देखकर अवधिज्ञान से अपने और उसके पाप-पुण्य का तोल लगाने लगते हैं और सोचते हैं कि मैंने मंद पुण्य किया है जिससे कि सौधर्म आदि के वैभव से शून्य रहा हूँ इत्यादि सोचते हुए एवं कर्म को मंद करते हुए सम्यक्त्व को ग्रहण करते हैं।
जिनबिम्ब दर्शन—कदाचित् ये देव जिनेन्द्र भगवान के पंचकल्याणकों के महोत्सव में आते हैं और किन्हीं अतिशयशाली जिन महिमा को देखते हैं अथवा अकृत्रिम चैत्यालयों के दर्शन करते हैं। तब इन्हें सम्यक्त्व की उत्पत्ति हो जाती है।
धर्मश्रवण—कदाचित् मध्यलोक में मुनियों से धर्म श्रवण करते हैं, कदाचित् देवों की सभा में ही धर्म श्रवण करते हैं जिसके फलस्वरूप सम्यक्त्व निधि को प्रगट कर लेते हैं। पुन: सम्यक्त्व के प्रभाव से मरण काल में संताप और संक्लेश न करते हुए शांति भाव से देव पर्याय से च्युत होकर मनुष्य भव प्राप्त कर लेते हैं एवं सम्यक्त्व के फलस्वरूप सम्यक्चारित्र को ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।