इष्ट का वियोग हो जाने पर बार-२ उसका चिंतवन करना इष्टवियोगज आर्तध्यान है अर्थात् धन, धान्य, चांदी, सुवर्ण, सवारी, शय्या, आसन, माला, चन्दन व स्त्री, पुत्रादि सुखों के साधन को मनोज्ञ कहते हैं । ये मनोज्ञ पदार्थ मेरे हों इस प्रकार चिन्तवन करना, मनोज्ञ पदार्थ के वियोग होने पर उनके उत्पन्न होने का बार – बार चिन्तन करना इष्टवियोगज आर्तध्यान है ।
यह ध्यान के चार भेदों में से एक हैं । किसी एक विषय में चित्त को रोकना ध्यान है इसके आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान व शुक्लध्यान ऐसे चार भेद हैं । उनमें भी आर्तध्यान के चार भेद हैं – इष्टवियोगज, अनिष्टसंयोगज, पीड़ाजन्य व निदान । दुख में होने वाले ध्यान को आर्तध्यान कहते हैं ।