धातकीखंड द्वीप के दक्षिण और उत्तर भाग में इस द्वीप को विभाजित करने वाला दक्षिण उत्तर लंबा एक-एक इष्वाकार पर्वत है, ‘लवण और कालोदधि समुद्र से संलग्न ये पर्वत ४०० योजन ऊँचे १००० योजन विस्तार वाले, ४००००० योजन लंबे हैं एवं अभ्यंतर भाग में अंकमुख तथा बाह्य भाग में क्षुरप्र के आकार हैं। इनकी नींव १०० योजन प्रमाण है ये सुवर्ण मयवर्ण वाले हैं। इन पर्वतों के दोनों पार्श्व भागों में ५०० धनुष विस्तृत, २ कोस ऊँची, फहराती हुई ध्वजाओं से युक्त एक-एक तट वेदी हैं। उन वेदियों के दोनों पार्श्व भागों में वेदी, तोरण, पुष्करिणी, वापिकाओं से युक्त जिनेन्द्र प्रासादों से रमणीय वनखंड हैं। इन वनखंडों में देव मनुष्य के युगलों से सहित, तटवेदी तोरण आदि से युक्त, रत्नों से निर्मित दिव्य प्रासाद हैं इष्वाकार पर्वतों के ऊपर भी चारों ओर दिव्य तट वेदी वन और वनवेदी हैं।
इन पर्वतों पर चार-चार उत्तम कूट हैं प्रथम कूट पर जिनभवन एवं शेषकूटों पर व्यंतरों के नगर हैं। दोनों इष्वाकार के मध्य में दोनों तरफ-एक-एक क्षेत्र होने से धातकीखंड में दो क्षेत्र हो गये हैं जिनका नाम है पूर्वधातकीखंड एवं पश्चिम धातकीखंड। जम्बूद्वीप के क्षेत्र, पर्वत, कुण्ड और नदियों से दूने-दूने क्षेत्र पर्वत आदि धातकीखंड में हैं।