गमन कम्पन आदि अर्थों में क्रिया शब्द का प्रयोग होता है । जीव व पुदगल ये दो ही द्रव्य क्रिया शक्ति सम्पन्न माने गये है । संसारी जीवों में और अशुद्ध पुदगलों की क्रिया वैभाविक होती है और मुक्तजीवों व पुदगल परमाणुओं की स्वाभाविक ।
धार्मिक क्षेत्र में श्रावक व साधुजन जो कायिक अनुष्ठान करते है वे भी हलन चलन होने के कारण क्रिया कहलाते है जिसमें श्रावकों की २५ क्रियाएं है उन्हींं २५ क्रियाओं में एक ईर्यापथ क्रिया है – ईर्यापथ की कारणभूत क्रिया ईर्यापथ क्रिया है ।