अनेक प्रकार के जीवस्थान,, योनिस्थान, जीवाश्रय आदि के विशिष्ट ज्ञानपूर्वक प्रयत्न के द्वारा जिसमें जीव जन्तु पीड़ा का बचाव किया जाता है , जिसमें ज्ञान, सूर्य, प्रकाश और इन्द्रिय प्रकाश से अच्छी तरह देखकर गमन किया जाता है तथा जो शीघ्र , विलम्ति, सम्भ्रान्त, विस्मित, लीलाविकार, अन्य दिशाओं की ओर देखना आदि गमन के दोषों से रहित गतिवाली है वह ईर्यापथ शुद्धि है