जलन , ईर्ष्या , मात्सर्य ये एक दूसरे के पर्यायवाची नाम है | ईर्ष्यालु व्यक्ति प्रत्येक स्थान पर घ्रणा का पात्र होता है | अपने से दूसरे कि तरक्की , बढोत्तरी , प्रशंसा न सह पाना, ईर्ष्या कहलाती है |
ईर्ष्या करने वाले अकारण ही कर्मबंध कर दुख उठाते है जबकि जो व्यक्ति दूसरे के गुणों को देखकर प्रसन्न होता है , स्वयं भी उन गुणों को प्राप्त करने का , ग्रहण करने प्रयास करते वह आगे उन गुणों को प्राप्त कर लेता है | साथ ही जन साधारण में प्रशंसा का पात्र बनता है |