१. कल्पवासी स्वर्गों का दूसरा कल्प
२. पूर्वोेत्त्तर कोण वाली विदिशा देवोें के चार भेदोें में एक भेद वैज्ञानिक भी है जो कि ऊध्र्वलोक में रहते हैैं स्वर्ग के दो विभाग कल्प व कल्पातीत में १६ स्वर्ग तक के देव कल्प कहलाते हैैं जिसमें दूसरा स्वर्ग ईशान स्वर्ग है सौधर्म और ईशान कल्पयुगल हैैं ये प्रत्येक इन्द्र दस प्रकार के होतें हैैं । ईशान इन्द्र नन्दीश्वर द्वीप की वन्दनार्थ वृषभयान पर आरूढ होकर जाते हैैं । इनके विमान का नाम षुष्पक है । ईशान स्वर्ग पर्यन्त देव व देवी दोनोें की उत्पत्त्ति होती हैैं इसके आगे नियम से देव ही उत्पन्न्न होतें हैैं देवियां नही । ऐशान स्वर्ग पर्यन्त के देव अपनी -२ देवियोें के साथ मनुष्योें के समान शरीर से कामसेवन करते हैैं । मुख्यत: दिशाएं चार हैैं और चार विदिशाएं हैैं । आगम में दस दिशाएं मानकर दस दिक्पाल के अर्घ्य चढोते हैैं उन दिशाओें में जो विदिशाएं हैैं उनमें पूर्व और उत्तर के बीच की दिशा ईशान कोण हैैं । पूजा, विधानादि में इन दिशाओें में अघ्र्यादि अर्घ्यादि चढाते समय इस दिशा में अनेक देवोें का आव्हन करते हैैं ।
वास्तुशास्त्र के अनुसार ईशान कोण में सदैव जिनमन्दिर बनाना शुभ और सवोत्त्तम रहता है ।