तपश्चर्या को करने वाले मुनि अनेक प्रकार की ऋद्धियों के स्वामी होते हैं । ऋद्धियों के स्वामी होते हैं |
ऋद्धियों के आठ भेद हैं – बुद्धि ऋद्धि , विक्रिया ऋद्धि , क्रिया ऋद्धि, तप ऋद्धि, बल ऋद्धि, औषधि ऋद्धि, रस ऋद्धि और क्षेत्र ऋद्धि |
इनमें बुद्धि ऋद्धि के १८ भेद , विक्रिया के ११, क्रिया के २, तप के ७, बल के ३, औषधि के ८, रस के ६ और क्षेत्र ऋद्धि के २ ऐसे अवान्तर भेद होते है |
विक्रिया ऋद्धि के ११ भेद है – अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य ईशत्व, वशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान और कामरूप | इसमें ईशित्व ऋद्धि का अर्थ है- सब जगत पर प्रभुता का होना |
घोराघोर तपश्चरण करने वाले मुनियों के ये ऋद्धियाँ प्रगट हो जाया करती है | गणधर देव के ये ऋद्धियाँ तत्क्षण ही उत्पन्न हो जाया करती है | ये ऋद्धियाँ भावलिंगी मुनियों के ही प्रगट होती है , अन्यों के नहीँ हो सकती है |