आजकल ब्लड प्रेशर से सभी, परेशान हैं। चाहे उन्हें उच्च रक्तचाप या फिर निम्न रक्तचाप हो, किसी न किसी के चपेट में जरूर हैं। इसके लिए बहुत से कारण जिम्मेवार हैं। आहार तो सभी ले रहे हैं लेकिन इसे कैसे और किस समय लिया जाए, इसका अनुपालन नहीं कर पा रहे हैं। रक्तचाप का बहुत कम या अधिक होना दोनों सही नहीं हैं। रक्त भाराधिक्य से छोटी—छोटी धमनियों के फटने से अधरंग हो जाता है। धमनी को उंगली से दबाने पर उसके भीतर के रक्तचाप का वेग प्रतीत कर सकते हैं। जब हमारे हृदय का वेग अधिक हो तो रक्तचाप अधिक रहता है। जब हृदय कमजोर होता है, रक्तचाप कम हो जाता है। धमनियां जब चौड़ी हो जाती हैं तो रक्त बहुत आसानी से बहता है और धमनी में रक्तचाप कम होता है। इसे देखने के लिए रक्तचाप—मापक यंत्र बनाए गए हैं। धमनी रक्तचाप दो प्रकार का होता है—संकुचन और आकुंचन के समय होता है और दूसरा जो हृदय के प्रसार के समय होता है। संकुचन रक्तचाप प्रसार रक्तचाप प्रसार रक्तचाप से अधिक होता है। रक्तचाप का कम या अधिक होना दोनो सही नहीं हैं। जब रक्त के बहाव में रूकावट होती है तो रक्तचाप अधिक हो जाता है। जब धमनियां पहले से चौड़ी हो जाती हैं तो रक्त बहुत आसानी से बहता है और धमनी में रक्तचाप कम हो जाता है। उच्च रक्तचाप प्राय: धनी और सुविधा संपन्न लोगों का रोग समझा जाता है लेकिन ऐसा मानना सही नहीं है। उच्च रक्तचाप ऐसा रोग है जो चुपके से शरीर में आता है और इसका प्रभाव शरीर के सभी अंगों पर पड़ता है। वैसे शुरू में इस रोग का पता नहीं लगता जो बाद में परेशानी का कारण बन जाता है। हमारे देश का हर १२ वां व्यक्ति इसके गिरफ्त है, ऐसा चिकित्सा अनुसंधानकर्ताओं ने बताया है। दिल के सिकुडनें के समय रक्त पर पड़े सबसे अधिक दबाव और हृदय के सुस्ताने के मध्य उत्पन्न सबसे कम दबाव को चिकित्सकों की भाषा में ‘सिस्टोलिक प्रेशर’ तथा ‘डाइस्टोलिक प्रेशर’ कहते हैं । हृदय हमारे पूरे शरीर को रक्त पंप करता रहता है। इसके लिए वह क्रमश: ७२ बार सिकुडता है जिससे दबाव पड़ने से रक्त धमनी के रास्ते आगे बढ़ता है। सिकुड़ने के बाद हृदय को तनिक विश्राम करने की जरूरत पड़ती है। सुस्ताने के दौरान रक्त पर दबाव कम हो जाता है। रक्तचाप सभी समय एक समान नहीं रहता। तनाव, उत्तेजना, क्रोध, और शारीरिक थकान के पश्चात् रक्तचाप सामान्य अवस्था से काफी अधिक बढ़ जाता है। रक्तचाप माप के लिए रोगी की आयु और उसके वजन का ध्यान रखा जाता है। ३५-४५ वर्ष के व्यक्ति के लिए ११० / ७० से १२० / ८० का रक्तचाप सामान्य हैं जबकि ६५-७० वर्ष के व्यक्ति के लिए १३०/८५ का रक्तचाप सामान्य समझा जाता है। इस रोग में व्यक्ति तन से ही नहीं, मन से भी बीमार हो जाता है। रोगी का शरीर सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, थकावट, अनिद्रा का घर बन जाता है। उच्च रक्तचाप अथवा हाइपरटेंशन व्यक्ति को अनेकों प्रकार से परेशान करता है। यदि समय रहते इस रोग का सही ढंग से उपचार न किया जाए तो इसके घातक प्रभाव शरीर पर पड़ते हैं। दिल का दौरा पड़ने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। यह रोग कई हालतों में गुर्दें और आंखों को भी खराब कर देता है। फलों के जूस की अपेक्षा फलों का सेवन करें। यह ज्यादा असरकारक होगा। हरी पत्तेदार सब्जियां एवं सलाद भरपूर मात्रा में ले। भोजन में नमक की मात्रा कम करें। वसायुक्त तथा बोजारू तली हुई चीजों व धूम्रपान तथा मद्यपान का त्याग कर उच्च रक्तचाप का इलाज इससे ग्रसित व्यक्ति स्वयं कर सकता है। निम्न रक्तचाप में सिरदर्द, चक्कर आना,नाड़ी का धीरे चलना, मानसिक तनाव, अवसाद, घबराहट, हाथ—पांव ठंडे रहना, भयभीत रहना आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। विशेषकर स्त्रियों में मोटापे की चिंता के कारण कम खाना, रक्त में लोहा फासफोरस खनिज की कमी से, पाचन क्रया का सही ढंग से कार्य न करना इत्यादि अन्य कारण भी हो सकते हैं। निम्न रक्तचाप में आहार का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। भोजन में सलाद, सब्जी, दही का रायता और साग अपनी भूख लगने पर ही खाएं। शुरू में एक सप्ताह तक पहले फलाहार, रसाहार, किशमिश, मुनक्का, दूध या पनीर लें। यदि आप पनीर नमकीन लेना चाहें तो उसमें खीरा, ककड़ी, गाजर, कद्दूकस करके स्वादानुसार टमाटर, अदरक डालें। यदि आपकों मीठा खाना प्रिय हो तो किशमिश, केला, व चीकू डालकर खाएं। योगासन तथा प्राणायाम के नियमित अभ्यास से इस रोग से सदैव के लिए छुटकारा पाया जा सकता है। इससे नाड़ी संस्थान सबल होता है और शरीर का कार्य सुचारू रूप से होता है। प्रारंभ में हल्के आसन , कमर चक्रासन, वज्रासन, उष्ट्रासन, भुजंगासन, शलभासन, मकरासन तथा पवन मुक्तासन का अभ्यास करें। प्राणायाम में कपालभाती , उज्जायी तथा भ्रामरी अभ्यास करें। सायंकाल में आधे से एक घंटे तक योगनिंद्रा करें। दिन में किसी भी समय पानी के साथ बिना नमक के एक या दो नींबू का रस पीने से उच्च रक्तचाप नीचे आ जाता है।