तर्ज-हम लाए हैं तूफान से………
हे वीतराग प्रभु! मुझे तपशक्ति दीजिए।
जब तक तपस्या कर न सवूँâ भक्ति दीजिए।।
विपरीत अर्थ करके तप का पतित हो गया।
मैं क्षणिक सुख को भोग कर उसमें ही खो गया।।
हे नाथ! इन दुखों से मुझको मुक्ति दीजिए।
जब तक तपस्या कर न सवूँâ भक्ति दीजिए।।१।।
कन्या अनंगशरा ने तप किया था वनों में।
बन करके विशल्या दिखाई शक्ति क्षणों में।।
हे नाथ! मुझे भी वही तपशक्ति दीजिए।
जब तक तपस्या कर न सवूँâ भक्ति दीजिए।।२।।
उत्तम तपो धरम से मुनी मोक्ष जाते हैं।
श्रावक भी करें तप यदी तो स्वर्ग पाते हैं।।
हे नाथ! ‘चन्दनामती’ ये युक्ति दीजिए।
जब तक तपस्या कर न सवूँâ भक्ति दीजिए।।३।।