तर्ज-तुमसे मिलने को……..
त्याग लेने का मन करता है।
हे प्रभो! त्याग लेने का मन करता है।।टेक.।।
भ्रान्तिवश मैंने शुभ कर्म को तज दिया।
विषय भोगों में ही अपना मन कर लिया।
उसे तजने का मन करता है।।हे प्रभो.।।१।।
त्याग की महिमा अब मैंने जानी प्रभो।
दान की गरिमा अब मैंने मानी प्रभो।।
दान देने का मन करता है।।हे प्रभो.।।२।।
देना आहार औषधि अभय दान भी।
ज्ञान का दान दे तजना अज्ञान भी।।
ज्ञान लेने का मन करता है।। हे प्रभो.।।३।।
साधु ही त्याग उत्तम धरम पालते।
आज भी वे परम शांति को धारते।।
शांति पाने को मन करता है।। हे प्रभो.।।४।।
दान देकर के श्रावक जनम धन्य हो।
‘‘चन्दनामति’’ मेरा मन भी धन धन्य हो।।
सुरभि लेने का मन करता है।। हे प्रभो.।।५।।