तर्ज-दीदी तेरा………
ब्रह्मचर्य व्रत को निभाना, हे नाथ! कठिन है इसे पाना।
झुकता उसके आगे जमाना, हे नाथ! कठिन है इसे पाना।।टेक.।।
जो विषयों का त्यागी है आत्मा का रागी,
वही ब्रह्मचर्य सहित है विरागी!
महासाधुगण की निधी यह धरोहर,
वही इसके बल पर बनें वीतरागी।।
उनको जग ने पावन है माना, हे नाथ! कठिन है उसे पाना।।१।।
सती सीता ने इसका कुछ अंश पाला,
हुई शीलव्रत की परीक्षा विशाला।
बनी जल की सरिता वो अग्नी की ज्वाला,
सुदर्शन का भी व्रत ने उपसर्ग टाला।।
उनकी जय से गूंजा जमाना, हे नाथ! कठिन है इसे पाना।।२।।
मुझे भी प्रभो! इसका पालन करा दो,
मेरी आतमा को भी पावन बना दो।
विषयों से मुझको विरागी बना दो,
मुझे ‘चन्दना’ आत्मस्वादी बना दो।।
जिससे हो ना भव भव में आना, हे नाथ! कठिन है इसे पाना।।३।।