(गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के प्रवचनांश……..)
प्रिय हित मित मधुर वचन सुन्दर, सबमें विश्वास प्रगट करते।
ये उत्तम सत्य वचन जग में, अप्रिय जन को भी वश करते।।
विश्वासघात है पाप महा, नहिं कभी भूूलकर करना तुम।
जैसा तुम अपने प्रति चाहो, वैसा सबके प्रति करना तुम।।
जो मनुष्य सत्य वचन बोलता है उसके समस्त व्रत विद्यमान रहते हैं अर्थात् सत्य व्रत के पालन करने से ही वह समस्त व्रतों का पालन करने वाला हो जाता है और वह सत्यवादी सज्जन पुरुष तीन लोक की पूज्यनीय सरस्वती को भी सिद्ध कर लेता है, इसके अलावा सत्यवादी मनुष्य परभव में जाकर श्रेष्ठ चक्रवर्ती राजा बनते हैं तथा इन्द्रादि फल को प्राप्त करते हैं और सबसे उत्कृष्ट मोक्षरूपी फल को भी प्राप्त कर लेते हैं तथा शिष्ट मनुष्य इनको बड़ी प्रतिष्ठा से देखते हैं और वे सज्जन कहे जाते हैं इत्यादि नाना प्रकार वेâ उत्तम फल उनको मिलते हैं जो कि सर्वथा अवर्णनीय है इसलिए सज्जनों को अवश्य ही सत्य बोलना चाहिए। हे भव्य! दूसरों को बाधा-पीड़ा करने वाले वचन कभी मत बोलो, यदि वह वचन सत्य भी हो तो भी गर्वरहित हो उसे छोड़ दो। सत् अर्थात् समीचीन और प्रशस्त वचन सत्य कहलाते हैं। ये वचन अमृत से भरे हुये हैं। मिथ्या अपलाप करने वाले और धर्मशून्य वचन सदा छोड़ो। गर्हित, निंदित, हिंसा, चुगली, अप्रिय, कठोर, गाली-गलौच, क्रोध, बैर आदि के वचन, सावद्य (पाप) के वचन और आगम विरुद्ध वचन इन सबको छोड़ो। सत्य, प्रिय, हितकर और सुंदर वचन सर्वसिद्धि को देने वाले हैं। इस लोक में विश्वासघात के समान महापाप कोई नहीं है। असत्यवादी लोग अपने गुरु, मित्र और बंधुओं के साथ भी विश्वासघात करके दुर्गति में चले जाते हैं। विंâतु सत्य बोलने वाले लोगों को वचन सिद्धि हो जाया करती है। इसलिए हमेशा सत्य धर्म का पालन करना चाहिए।