अनादिकाल से विद्याओं का अध्ययन किया जाता है। विद्वतजन अपने- अपने मस्तिष्क से शास्त्रों का अर्थ निकालते हैं। शास्त्र के अस्तित्व को मानते हुए शब्दों के कई अर्थ निकलते हैं। मतान्तर की शुरुआत का मूल कारण यही है । इस लेख में वायव्य कोण एवं बढ़े हुए उत्तरी वायव्य कोण के महत्व तथा परिणाम बताने का प्रयास कर रहा हूँ। वायव्य कोण के अधिपति देवता वायु देव से सुसज्जित हैं। वायव्य कोण का ग्रह स्वामी चंद्र है। बगैर वायु के संसार एक पल भी नहीं चल सकता। प्राणी को जीने के लिए सांस लेने की क्रिया जरूरी है। यह वायुदेव के आशीर्वाद से ही प्राप्त होती है। चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है। चंद्रमा की कलाएँ देखने को मिलती हैं। वायव्य कोण में चंद्रदेव का भी गुण देखने को मिलता है। किसी भूखण्ड में उत्तरी वायव्य कोण बढ़ा हुआ होता है उसके परिणाम सुखद नहीं मिलते। शास्त्रों में इस तरह के भूखण्ड को त्याज्य लिखा है। किसी परिस्थिति में उसका परित्याग नहीं कर पाते हैं। उत्तरी वायव्य के बढ़ने से जो फल हमें मिलते हैं उससे बचना मुश्किल लगता है। भगवान महावीर का सिद्धान्त अनेकान्तवाद है एकान्तवाद नहीं। निम्नलिखित फल मिलने की संभावना रहती है।
१- किसी भी मकान, फैक्टरी में वायव्य कोण का बन्द होना शुभ संकेत नहीं है। धन के आगमन के साधन बन्द हो जाते हैं। कारखाने में दुर्घटनाएँ या एक्सीडेंट, मशीन का ब्रेकडाउन काफी बढ़ जाता है। मालिक की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन कमजोर होती जाती है। व्यापार पतन की तरफ जाने लगता है। लालबत्ती जलाने की नौबत आ सकती है।
२- वायव्य कोण दूषित होने से मित्रता शत्रुता में बदल जाती हैं। मन में उचाट बना रहता है पलायन के भाव में दृढ़ता आती है। इस कोण को दूषित न रखें।
३- वायव्य कोण अग्नि के सम्मुख होने से अग्नि का प्रिय मित्र माना गया है। अग्नि कोण में जेनरेटर, किचन, इनवर्टर, ट्रांसफार्मर, वॉयलर इत्यादि किसी कारणवश नहीं लगा पाते हैं तो वायव्य कोण में लगाया जा सकता है। लगाते समय पूर्ण सावधानी एवं शास्त्र अनुकूल लगायें। मुख्यत: अग्नि कोण एवं वायव्य कोण के दूषित होना कई शहरों में आग लगने के कारण हैं। वायु अग्नि का मिलाप होने से अग्निकांड की शुरुआत हो सकती है।
४- उत्तरी वायव्य कोण बढ़ा हुआ होने से ईशान कोण का घट जाना। ईशान कोण घटाना गृहपति के लिए शुभ संकेत नहीं है। ईशान कोण घटने का परिणाम पुरुष संतान की उत्पत्ति नहीं होना, धन लक्ष्मी का अभाव होना, दरिद्रता बढ़ना, संकटों से घिरे रहना इत्यादि परेशानियाँ आती हैं।
५- उत्तरी वायव्य कोण बढ़ने से अतिथि गृह के रिजल्ट अत्यधिक दुखदायी आते हैं। समझदार पढ़े लिखे बच्चे भी दिशाओं के प्रकोप को नहीं संभाल पाते हैं । मन में चंद्रदेव के द्वारा चंचलता, वायु देव की तरह भागने की मानसिकता पैदा हो जाती है। लड़कियों एवं लड़कों का घर से भागना या पलायन हो जाना बढ़े हुए उत्तरी वायव्य कोण की देन है। दोष से बचने का प्रयास करें।
६- बढ़े हुए उत्तरी वायव्य कोण में रहने से पति पत्नी के संबंध में दूरियाँ बढ़ती जाती हैं। अलगाव के भाव पैदा हो जाते हैं। कोर्ट केस होकर तलाक की नौबत आ जाती है। इस कोण में रहने से बच्चे अपनी मर्जी से शादी भी कर लेते हैं।
७- किसी भी स्टाफ को या सीनियर पोस्ट के आदमी को वायव्य कोण या बढ़े हुए वायव्य कोण में चेम्बर या सिटिंग देने से वह सज्जन बाहर—बाहर ज्यादा घूमते रहते हैं। ऑफिसों में मन नहीं लगता ज्यादातर केस में ऐसा पाया गया है वह रिजायन देकर चले जाते हैं।
८- गलती से भी तिजोरी कक्ष वायव्य कोण या बढ़े हुए वायव्य कोण में न बनायें। लक्ष्मी का पलायन तथा चोरी होने की संभावना बढ़ जाती है।
९- छोटे बच्चों को वायव्य कोण में सुलाने पर घर से काफी दूर बोर्ड़िंग या होस्टल में पढ़ने के संयोग काफी बढ़ जाते हैं। उत्तरी वायव्य कोण में अज्ञानतावश गेट न बनाएं अगर हो तो बन्द कर दें। वायव्य कोण के महत्व एवं परिणाम बताने का प्रयास किया है।