उत्पादन दोष के १६ भेद हैं उनके नाम इस प्रकार है – धात्री दोष, दूत, निमित्ति आजीवक, वनीपक, चिकित्सा, क्रोधी, मानी, मायावी, लोभी, पूर्वस्तुति, पश्चात् स्तुति , विद्या, मन्त्र, चूर्णयोग और मूलकर्म ।
१ धात्री दोष – धाय के सदृश बालक का पोषण संरक्षण आदि करके आहार लेना ।
२ दूत – अन्य ग्राम आदि जाते समय किसी का सन्देश कहकर आहार लेना ।
३ निमित्त- स्वर, व्यंजन आदि निमित्तों से शुभ – अशुभ फल बताकर आहार लेना ।
४ आजीव – जाति, कुल, शिल्प आदि को बताकर दाता को प्रसन्न कर आहार लेना।
५ वनीपक – दाता के अनुवूâल वचन बोलकर आहार लेना अर्थात् यदि दाता ने पूछा कि ब्राह्मण, भिक्षुक आदि को भोजन देना दान पुण्य है या नहीं ? तब उसके अभिप्राय को देखकर ‘पुण्य’ ऐसा कह देना ।
६ चिकित्सा – औषधि आदि से दाता को खुश करके आहार लेना ।
७ क्रोधादि कषाय – क्रोध, मान, माया या लोभ इन कषायों को करके आहार उत्पादन करना, ये इन चार कषायों के निमित्त से चार दोष होते है ।
८ पूर्व संस्तुति – तू दानी है, कीर्तिमान है । इत्यादि रूप से दाता की प्रशंसा करके आहार लेना ।
९ पश्चात् स्तुति – आहार लेने के बाद दाता की प्रशंसा करना ।
१० विद्या – विद्या आदि का प्रलोभन देकर आहार ग्रहण करना ।
११ मंत्र – मन्त्र का प्रलोभन देकर आहार ग्रहण करना ।
१२ चूर्णदोष – अंजन चूर्ण आदि देकर भोजन ग्रहण करना ।
१३ मूलकर्म दोष – अवश को वश करने का उपाय बताकर आहार ग्रहण करना । ये उत्पादन आदि सोलह दोष साधु के द्वारा किए जाने से उत्पादन कहलाते है ।