श्रावक के अष्टमूल गुण होते हैं । पाँच उदुम्बर फल और मद्य, मांस , मधु इन तीन मकार का त्याग अष्टमूल गुण कहलाता है । पाँच उदम्बर फल इस प्रकार हैं – बड़ पीपल, पाकर, कठुमर (ऊमर) गूलर (अंजीर)। इनमें उड़ते हुए त्रस जीव प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं । अत: इन का त्याग कर देना चाहिए ।
पुरूषार्थसिद्धि उपाय में आचार्य श्री अमृतचन्द सूरि ने कहा है –
‘मद्यं मासं क्षौद्रं पम्चोदम्बर फलानि यत्नेन् ।
हिंसाव्युपरतकामैर्मोक्त व्यानि प्रथममेव । ’
अर्थात् मद्य (शराब) मांस (अण्डे, मछली वगैरह) मधु (शहद) ये तीन मकार होते है जो सर्वथा निंद्य और अधमगति में पहुँचाने वाले हैं ही और इनके सेवन से स्वास्थ्य एवं धन की भी बड़ी मात्रा में बरबादी होती है । पाँच उदम्बर फल – बड़ पीपल, पाकर, कठुमर और गूलर इनको खाने में भी त्रस जीवों की हिंसा होती है । अत: तीन पाँच आठ । इन आठो वस्तुओं का त्याग करना ही अष्टमूलगुण कहलाता है जिसे हर व्यक्ति सहज ही ग्रहण कर सकता है ।
तीर्थंकर महावीर एक बार कई भव पूर्व भील की पर्याय में जंगल में एक मुनि को दूर से पशु समझकर मारने को उद्यत हो गए तब उनकी पत्नी ने कहा – इन्हें मत मारो, ये वन देवता हैं । भील उनके चरणों में नतमस्तक हो गया और मुनिराज के द्वारा अष्टमूलगुण का उपदेश सुनकर ग्रहण किया । बस ! यही से उनके जीवन का उत्थान प्रारम्भ हुआ और भील एक दिन तीर्थंकर महावीर बन गया ।