( कर्म के दस करण (अवस्था)का भेद )
उदयकाल के बाहर स्थित, अर्थात् जिसके उदय का अभी समय नहीं आया है ऐसा जो कर्म द्रव्य इसको अपकर्षण के बल से उदयाबली काल में प्राप्त करना उदीरणा है । कर्म के उदय की भाँति उदीरणा भी कर्मफल की व्यक्तता का नाम है परन्तु यहाँ इतनी विशेषता है कि किन्हीं क्रियाओं या अनुष्ठान विशेषों के द्वारा कर्म को अपने समय से पहले ही पका लिया जाता है । या अपकर्षण द्वारा अपने काल से पहले ही उदय में ले आया जाता है । उसे उदीरणा कहते हैं ।
प्रकृति उदीरणा,
स्थिति उदीरणा,
अनुभाग उदीरणा और
प्रदेश उदीरणा ।
उदय और उदीरणा में कोई विशेष अंतर नहीं है । कर्म का फल भोगने के काल को उदय कहते हैं और अपक्व कर्मों के पाचन को उदीरणा कहते हैं ।
उदीरणा की अपेक्षा अवाधा को बताते हैं- आवलियं आबाहा उदीरणभासिज्ज सत्तकम्माणं । परभवियआडग्गस्स य उदीरणा णत्थि णियमेण ।’ सात कर्मों की अवाधा उदीरणा की अपेक्षा से एक आवली मात्र है और परभव की आयु जो बांध ली है उसकी उदीरणा निश्चय कर नहीं हो तो अर्थात् वर्तमान आयु की उदीरणा तो हो सकती है, परन्तु आगामी आयु की नहीं होती ।