उपकरण का सामान्य अर्थ निमित्त रूप से सहायक होना है । वह दो प्रकार का है – स्वोपकार व परोपकार । यद्यपि व्यवहार मार्ग में परोपकार की महत्ता है पर अध्यात्म मार्ग में स्वोपकार ही अत्यन्त इष्ट है ।
धर्म और अधर्म द्रव्य का उपकार – गतिस्थिुत्युपग्रहै धर्माधर्मयोरूपकार: जीव और पुदगल की गति रूप उपकार धर्म द्रव्य करता है और स्थिति रूप उपकार अधर्म द्रव्य करता है ।
आकरा द्रव्य का उपकार – ‘आकाशस्यावगाह: समस्त द्रव्यों को अवकाश – स्थान देना यह आकाश द्रव्य का उपकार है ।
पुदगल द्रव्य का उपकार- शरीर बाड़्मन: प्राणापाना: पुदगलानाम् जीवों के प्रति पुदगलों का उपकार शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छवास ये पुदगल द्रव्य के उपकार है । ‘सुख दुख जीवित मरणोपग्रहाश्च’ इन्द्रिय जन्य सुख दुख जीवन मरण ये भी पुदगल द्रव्य के उपकार है ।
जीव का उपकार – परस्परोपग्रहो जीवानाम् आपस में एक दूसरे की सहायता करना जीवों का उपकार हैै । जगत में जीवों के उसके प्रकार के सम्बन्ध देखे जाते है जैसे – स्वामी सेवक का गुरू शिष्य का पति पत्नी का ये एक दूसरे का उपकार करते हैं ।
काल द्रव्य का उपकार – वर्तना परिणाम क्रिया परत्वा परत्वे च कालस्य ’ वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल द्रव्य के उपकार हैं । दूष्टापदेश ग्रन्थ में पूज्य पाद स्वामी ने लिखा है – यज्जीवस्योपकाराय ततदेहस्यापकारकम् । यददेहस्योपकाराय तज्जीवस्योपकारकम् ’’ जो तपादिक आचरण जीव का उपकारक है वह शरीर का अपकारक है । और जो धनादिक शरीर के उपकारक है वे जीव के अपकारक है ।
स्व व पर का उपकार – दान देने से जो पुण्य का संचय होता है वह अपना उपकार है तथा जिन्हें दान दिया जात है उनके सम्यग्ज्ञानादि की वृद्धि होती है यह पर का उपकार है महापुरूष जो उपकार करते हैं उसका बदला नही चाहते ।