( विनय गुण का भेद )
उत्तम मार्दव धर्म का लक्षण बताते हुए पूज्य ज्ञानमति माताजी ने कविता में लिखा है-
‘मृदुत का भाव कहा मार्दव, यह मान शत्रु मर्दनकारी । यह दर्शन ज्ञान चरित्र तथा, उपचार विनय से सुखकारी । ‘ अर्थात् मृदु का भाव मार्दव है, यह मार्दव मानशत्रु का मर्दन करने वाला है, यह आठ प्रकार के मद से रहित है और चार प्रकार की विनय से संयुक्त है ।
विनय के चार भेद हैं- ज्ञान, दर्शन, चारित्र और उपचार विनय ।
ज्ञान की विनय के अर्थशुद्धि, व्यंजनशुद्धि, उभयशुद्धि, कालशुद्धि, विनयशुद्धि, उपधान, बहुमान और अनिन्हव ये आङ्ग भेद है । इनका पालन करना और ज्ञानी की विनय करना ।
सम्यग्दर्शन के नि:शंकित आदि आङ्ग अंगों का पालन करना और दर्शन धारी की विनय करना ।
चसरित्र के अतिचारों को दूरकर चारित्रधारी की विनय करना तथा गुरु की प्रत्यक्ष और परोक्ष में मन-वचन-काय से विनय करना । गुरुओं की वैयावृत्ति करना, उनके अनुकूल प्रवृत्ति करना आदि उपचार विनय है ।
‘ जाति गोत्रादि कर्माणि शुक्लध्यानस्यहेतव: । उच्च जाति, गोत्र और क्रिया आदि शुक्ल ध्यान के हेतु माने गए है । इसलिए उच्च वर्ण आदि को मोक्ष के लिए कारण साम्रगी प्राप्त करने हेतु मान कषाय को छोड़कर विनय का आश्रय लेकर मार्दव धर्म को हृदय में स्थान देना चाहिए ।