चौदह गुणस्थान होते है उनमें से ११वें गुणस्थान का नाम ‘उपशांत कषाय’ गुणस्थान है । जिसका लक्षण गोम्मटसार जीवकाण्ड में इस प्रकार दिया है –
कदग फलजुदजलं वा , सरए सरवाणियं व णिम्मलयं ।
सयलोवसंत मोहो, उवसंत कसायओ होदि ।।
निर्मली फल से युक्त जल की तरह अथवा शरद ऋतु में ऊपर से स्वच्छ हो जाने वाले सरोवर के जल की तरह सम्पूर्ण मोहनीय कर्म के उपशम से उत्पन्न होने वाले निर्मल परिणामों को उपशांत कषाय नाम का ग्यारहवां गुणस्थान कहते है ।
इस गुणस्थान का पूरा नाम ‘उपशांतकषाय वीतराग छदमस्थ है । छदम शब्द का अर्थ है ज्ञानावरण दर्शनावरण । जो जीव इनके उदय की अवस्था में पाये जाते है वे सब छदमस्थ है । छदमस्थ भी दो तरह के हुआ करते हैं- एक सराग दूसरे वीतराग ग्यारहवें बारहवे गुणस्थान वर्ती जीव वीतराग और इनमें नीचे के सब सराग छदमस्थ है । कर्दम सहित जल में निर्मली डालने से कर्दम नीचे बैठ जाता है और ऊपर स्वच्छजल रह जाता है । इसी प्रकार इस गुणस्थान में मोहकर्म के उदय रूप कीचड़ का सर्वथा उपशम हो जाता है और ज्ञानावरण का उदय रहता है । इसलिए इस गुणस्थान का यथार्थ नाम उपशांत कषाय वीतराग छदमस्थ है ।