जिन्हें ग्यारह अंग और चौदहपूर्वोें का या उस समय के सभी प्रमुख शास्त्रों का ज्ञान है जो मुनि संघ में साधुओं को पढ़ाते है वे उपाध्याय परमेष्ठी कहलाते है । उपाध्याय परमेष्ठी के ११ अंग और १४ पूर्व को पढ़ना – पढ़ाना ही २५ मूलगुण है ।
ग्यारह अंग – आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृकथांग, उपासकाध्ययनांग, अन्तकृददशांग, अनुत्तरोप पादक दशांग, प्रश्नव्याकरणांग, और विपाक सूत्रांग ये ११ अंग है ।
चौदह पूर्वो के नाम – उत्पाद पूर्व, अग्रायणीय पूर्व, वीर्यानुप्रवाद पूर्व, अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व, ज्ञानप्रवाद पूर्व, कर्मप्रवादपूर्व, सत्प्रवाद पूर्व, आत्मप्रवाद पूर्व, प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व, विद्यानुवाद पूर्व, कल्याण प्रवाद पूर्व, प्राणानुवाद पूर्व, क्रियाविशाल पूर्व और लोक विन्दुसार पूर्व ये १४ पूर्व है ।