उपासकाध्ययनांग – यह अंग १२,६०,००० पदों द्वारा दार्शनिक, व्रतिक, सामायिकी , प्रोषधोप वाली, सचित्तविरत, रात्रिभुत्तिकविरत, ब्रह्मचारी, आरम्भविरत, परिग्रहविरत, और उद्दिष्टविरत इन ग्यारह प्रकार के श्रावको के लक्षण उन्हीं के व्रत धारण करने की विधि और उनके आचरण का वर्णन करता है ।
द्वादशांग श्रुतज्ञान क्या है ? जिनन्द्र देव की दिव्यध्वनि को गणधर देव धारण करते हैं । पुन: उसे द्वादशांग रूप से गुँथते हैं । अत: भगवान की वाणी ही द्वादशांग श्रुतज्ञान रूप है ।
श्रुतज्ञान के दो भेद हैं – अंगबाह्म और अंग प्रविष्ट । इनमें से अंगप्रविष्ट के बारह भेद हैं और अंगबाह्म के चौदह ।
अंग प्रविष्ट के नाम इस प्रकार है –
१़ आचारांग
२़ सूत्रकृतांग
३़ स्थानांग
४़ समवायांग
५़ व्याख्या प्रज्ञप्त्अिंग
६़ नाथधर्मकथांग
७़ उपासकाध्ययनांग
८़ अन्तकृददशांग
९़ अनुत्तरौपपादिकदशांग
१०़ प्रश्न व्याकरणांग
११़ विपाकसूत्रांग
१२़ दृष्टिवादांग ।