गोम्मटसार जीवकाण्ड में आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने दस प्रकार का सत्य बताया है – ‘‘जणवदसम्मदिठवणा, णामे रूबे पडुच्चववहारे । सम्भावणे य भावे, उवमाए दसविहं सच्चं । ’’ अर्थात जनपद सत्य, सम्मतिसत्य, स्थापनासत्य, नाम सत्य, रूप सत्य, प्रतीत्य सत्य, व्यवहार सत्य संभावना सत्य, भाव सत्य, उपमा सत्य इस प्रकार सत्य के दश भेद है ।
इन दश प्रकार के सत्य वचन के दश दृष्टान्त है – भक्त, देवी , चन्द्रप्रभप्रतिमा, जिनदत्त, श्वेत, दीर्घ, भात पकाया जाता है, शक्र जम्बूद्वीप को पलट सकता है , पाप रहित ‘यह प्रासुक है ’ ऐसा वचन और पल्योपम । उपमा सत्य का दृष्टान्त – दूसरे प्रसिद्ध सदृश पदार्थ को उपमा कहते है । इसके आश्रय से जो वचन बोला जाय उसको उपमा सत्य कहते है । जैसे पल्य । यहाँ पर रोमखण्डों का आधार भूत, गडढा, पल्य अर्थात् खास के सदृश होता है इसलिए उसको पल्य कहते हैं । इस संख्या को उपमा सत्य कहते हैं ।