प्रश्न १- गोत्र कर्म के कितने और कौन से भेद है?
उत्तर- गोत्र कर्म के दो भेद है- (१) उच्चगोत्र (२) नीचगोत्र।
प्रश्न २- उच्च गोत्र किसे कहते है?
उत्तर- जिसके उदय से जीव लोकमान्य कुल में देह धारण करे उसे उच्च गोत्र कहते है।
प्रश्न ३- नीच गोत्र किसे कहते है?
उत्तर- जिसके उदय से जीव लोक निंद्य कुल में देह धारण करे वह नीच गोत्र है।
प्रश्न ४- उच्च गोत्र, नीच गोत्र किसको होता है?
उत्तर- देवों भोगभूमि के मनुष्यों के उच्च गोत्र और नारकी, तिर्यंञचों के नीच गोत्र ही होता है। परन्तु कर्मभूमि के मनुष्यों के उच्च और नीच दोनों गोत्र होते है।
प्रश्न ५- उच्छवास किसे कहते है?
उत्तर- जिस कर्म के उदय से श्वासोच्छवास हो उसे उच्छवास कहते है।
प्रश्न ६- प्राण किसे कहते है?
उत्तर- वीर्यान्तराय और ज्ञानावरण के क्षयोपशम तथा अंगोपांग नाम कर्म के उदय की अपेक्षा रखने वाला आत्मा कोष्ठगत जिस वायु को बाहर निकालता है, उच्छ्वास लक्षण इस वायु को प्राण कहते है।
प्रश्न ७- श्वोसच्छवास किसका भेद है?
उत्तर- श्वोसच्छवास प्राण का एक भेद है, आहार पर्याप्ति का एक भेद है- और ‘उच्छवास’ नामकर्म की एक प्रकृति है।
प्रश्न ८- ज्ञानावरणादि कर्म प्रकृतियों के कितने करण (अवस्थाएं) होती है?
उत्तर- दश-दश करण (अवस्थाएं) होती है।
प्रश्न ९- उन दस करणों के नाम बताओ?
उत्तर- (१) बंध (२) उत्कर्षण (३) संक्रमण् (४) अपकर्षण (५) उदीरणा (६) सत्त्व (७) उदय (८) उपशम (९) निधति (१०) निकाचना।
प्रश्न १०- उत्कर्षण किसे कहते है?
उत्तर- जो कर्मों की स्थिति तथा अनुभाग का बढ़ना है वह उत्कर्षण है।
प्रश्न ११- जम्बूद्वीप में कितने क्षेत्र है?
उत्तर- जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र है।
प्रश्न १२- जम्बूद्वीप की उत्तम भोगभूमि के नाम बताओ?
उत्तर- देवकुरू और उत्तरकुरू ये जम्बूद्वीप की उत्तम भोगभूमि हैं।
प्रश्न १३- जम्बूद्वीप में कुल कितनी भोगभूमिया है?
उत्तर- जम्बूद्वीप में कुल छह भोगभूमिया है।
प्रश्न १४- मध्यम एवं जघन्य भोगभूमि कहाँ है?
उत्तर- जम्बूद्वीप के हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र में जघन्य भोगभूमि है। और हरि और रम्यक क्षेत्र में मध्यम भोगभूमि है।
प्रश्न १५- उत्तम भोगभूमि के मनुष्य एवं तिर्यच्चों की आयु कितनी है?
उत्तर- उत्तम भोगभूमि के मनुष्य एवं तिर्यच्चों की आयु एक पल्य की है।
प्रश्न १६- भोगभूमि के मनुष्यों की जीवन वैâसा होता है?
उत्तर- भोगभूमि के मनुष्य सदा युवा रहते हैं उन्हें कोई रोग नहीं होता और न मरते समय कोई वेदना ही होती है। बस पुरूष को जंभाई और स्त्री को छींक आती है और उसी से उनका मरण हो जाता है। मरण होने पर उनका शरीर कपूर की तरह उड़ जाता हैैै।
प्रश्न १७- भोगभूमि के मनुष्य भोजन एवं आवश्यक वस्तुएँ कहां से प्राप्त करते है?
उत्तर- भोगभूमि में कल्पवृक्षों के द्वारा प्राप्त वस्तुओं से ही मनुष्य अपना जीवन निर्वाह सानन्द करते है।
प्रश्न १८- श्रुतज्ञान के कितने भेद है?
उत्तर- श्रुतज्ञान के दो भेद हैं-
१ अंग बाह्य
२ अंगप्रविष्ट
प्रश्न १९- अंग प्रविष्ट के कितने भेद है?
उत्तर- अंग प्रविष्ट के १२ भेद है।
प्रश्न २०- अंग बाह्य के कितने भेद है?
उत्तर- अंग बाह्य के १४ भेद है।
प्रश्न २१- अंग प्रविष्ट के १२ भेदों के नाम बताओ?
उत्तर- अंग प्रविष्ट के १२ भेदों के नाम इस प्रकार है-
(१) आचारांग (२) सूत्रकृतांग (३) स्थानांग (४) समवायांग (५) व्याख्या प्रज्ञप्तिअंग (६) नाथधर्मकथांग (७) उपासकाध्ययनांग (८) अन्तकृददशांग
(९) अनुत्तरौपपादिकदशांग (१०) प्रश्नव्याकरणांग (११) विपाक सूत्रांग (१२) दृष्टिवादांग।
प्रश्न २२- उपासकाध्ययनांग में किसका वर्णन आता है?
उत्तर- उपासकाध्ययनांग ११,६०,००० पदों द्वारा दार्शनिक, पृतिक, सामायिकी, प्रोष धोपवासी, सचित्त विरत, रात्रि भुक्तिविरत, ब्रह्मचारी, आरम्भ विरत, परिग्रह विरत और उद्दिष्टविरत इन ग्यारह प्रकार के श्रावकों के लक्षण, उन्हीं के व्रत धारण करने की विधि और उनके आचरण का वर्णन करता है।
प्रश्न २३- ‘दृष्टिवादांग’ के कितने अधिकार है?
उत्तर- दृष्टिवादांग के पाँच अधिकार है-
१ परिकर्म
२ सूत्र
३ प्रथमानुयोग
४ पूर्वगत
५ चूलिका
प्रश्न २४- पूर्वगत अर्थाधिकार के कितने और कौन से भेद है?
उत्तर- पूर्वगत अर्थाधिकार के चौदह भेद है-
(१) उत्पाद पूर्व (२) अग्रायणीय पूर्व (३) वीर्यानुप्रवाद पूर्व (४) अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व (५) ज्ञानप्रवाद पूर्व (६) सत्यप्रवाद पूर्व (७) आत्मप्रवाद पूर्व (८) कर्मप्रवाद पूर्व (९) प्रत्याख्यान पूर्व (१०) विद्यानुप्रवाद पूर्व (११) कल्याणवादपूर्व (१२) प्राणावायपूर्व (१३) क्रियाविशाल पूर्व (१४) लोकविन्दुसारपूर्व ।
प्रश्न २५- उत्पाद पूर्व किसका वर्णन करता है?
उत्तर- उत्पाद पूर्व दस वस्तुगत, दो सौ प्राभृतों के एक करोड़ पदों द्वारा जीव, काल और पुद्गल द्रव्य के उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य का वर्णन करता है।
प्रश्न २६- द्रव्य का लक्षण क्या है?
उत्तर- ‘सद् द्रव्य लक्षणं’ द्रव्य का लक्षण सत् है।
प्रश्न २७- सत् क्या है?
उत्तर- ‘उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्तं सत् ’ जिसमें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पाया जाय उसे सत् कहते है।
प्रश्न २८- उत्पाद किसे कहते है?
उत्तर- द्रव्य में नवीन पर्याय की उत्पत्ति को उत्पाद कहते है। जैसे- जीव की देव पर्याय का उत्पाद।
प्रश्न २९- व्यय किसे कहते है?
उत्तर- पूर्व पर्याय के विनाश को व्यय कहते है। जैसे- जीव की मनुष्य पर्याय का विनाश।
प्रश्न ३०- ध्रौव्य किसे कहते है?
उत्तर- पूर्वपर्याय का विनाश और नवीन पर्याय का उत्पाद होने पर भी सदा बने रहने वाले मूल स्वभाव को ध्रौव्य कहते है। जैसे- जीव की मनुष्य तथा देव दोनों पर्यायों में जीवत्व का रहना।
प्रश्न ३१- ‘समिति’ किसे कहते है?
उत्तर- आगम के अनुसार गमनागमन, भाषण, भोजन आदि में सम्यक ‘‘इति- समीचीन प्रवृत्ति’’ करना समिति है।
प्रश्न ३२- समिति के भेद बताओ?
उत्तर- समिति के पाँच भेद है- (१) ईर्या समिति (२) भाषा समिति (३) एषणा समिति (४) आदान निक्षेपण समिति (५) उत्सर्ग समिति
प्रश्न ३३- उत्सर्ग समिति का लक्षण बताओ?
उत्तर- हरी घास, जीव जन्तु आदि से रहित, एकांत स्थान में मल मूत्रादि विसर्जित करना उत्सर्ग समिति है।
प्रश्न ३४- काल के २ विभाग किस भेद से होते है?
उत्तर- उत्सर्पिणि और अवसर्पिणी के भेद से काल के २ विभाग होते है।
प्रश्न ३५- अवसर्पिणी काल किसे कहते है?
उत्तर- जिसमें मनुष्यों एवं तिर्यच्चों की आयु, शरीर की ऊँचाई, वैभव आदि घटते रहते हैं उसे अवसर्पिणि काल कहते है।
प्रश्न ३६- उत्सर्पिणी काल किसे कहते है?
उत्तर- जिसमें मनुष्यों एवं तिर्यच्चों की आयु, शरीर की ऊँचाई, वैभव आदि बढ़ते रहते हैं उसे उत्सर्पिणी काल कहते है।
प्रश्न ३७- उत्सर्पिणीकाल कितना है? और अवसर्पिणी काल कितना है?
उत्तर- अद्धापल्यों से निर्मित दस कोड़ा-कोड़ी सागर का उत्सर्पिणी काल है और इतना ही अवसर्पिणी काल है।
प्रश्न ३८- एक कल्पकाल कितने सागर का होता है?
उत्तर- बीस कोड़ा-कोड़ी सागर का एक कल्पकाल होता है।
प्रश्न ३९- उत्सर्पिणी काल के कितने भेद होते है नाम बताओ?
उत्तर- उत्सर्पिणी काल के छ: भेद होते हैं उनके नाम इस प्रकार है-
१दु:षमा दुषमा, २दुषमा, ३ दुषमा-सुषमा, ४ सुषमा-दुषमा, ५ सुषमा , ६ सुषमा-सुषमा।
प्रश्न ४०- दुषमा-दुषमा नामक छट्टा काल कितने वर्ष का है?
उत्तर- दुषमा-दुषमा नामक छट्टा काल इक्सीस हजार वर्ष का है।
प्रश्न ४१- ‘दुषमा’ नामक पंचम काल कितने वर्ष का है?
उत्तर- ‘दुषमा’ नामक पंचम काल भी इक्सीस हजार वर्ष का है।
प्रश्न ४२- दुषमा-सुषमा नामक चौथा काल कितने वर्ष का है?
उत्तर- दुषमा-सुषमा नामक चौथा काल बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागर का है।
प्रश्न ४३- सुषमा-दुषमा नामक तीसरा काल कितने वर्ष का है?
उत्तर- सुषमा-दुषमा नामक तीसरा काल दो कोड़ा-कोड़ी सागर का है।
प्रश्न ४४- सुषमा नामक दूसरा काल कितने वर्ष का है?
उत्तर- सुषमा नामक दूसरा काल तीन कोड़ा-कोड़ी सागर का है।
प्रश्न ४५- सुषमा सुषमा नामक प्रथमकाल कितने वर्ष का है?
उत्तर- सुषमा-सुषमा नामक प्रथम काल चार कोड़ा कोड़ी सागर का है।
प्रश्न ४६- श्रावक के कितने मूलगुण होते है?
उत्तर- श्रावक के अष्टमूलगुण होते है।
प्रश्न ४७- अष्टमूलगुण के नाम बताओ?
उत्तर- तीन मकार- मद्य, मांस, मधु, और पाँच उदुम्बर फल का त्याग अष्टमूलगुण कहलाता है।
प्रश्न ४८-पांच उदम्बर फल कौन से है?
उत्तर- बड़, पीपल, पाकर, कठूमर और गूलर ये पाँच उदम्बर फल हैं।
प्रश्न ४९- तीर्थंकर महावीर के जीव ने किस पर्याय में अष्टमूलगुण को धारण किया ?
उत्तर- भील की पर्याय में दिगम्बर मुनिराज से अष्टमूलगुण को धारण किया था।
प्रश्न ५०- ‘उदय’ किसे कहते है?
उत्तर- कर्म का अपनी स्थिति को प्राप्त होना अर्थात् फल देने का समय प्राप्त हो जान ‘उदय’ है।
प्रश्न ५१- औदारिक शरीर व उसके आंगोपांग नाम कर्म का उदय किस गुणस्थान में होता है?
उत्तर- औदारिक शरीर व उसके आंगोपांग नाम कर्म का उदय छतठे प्रमत्त गुणस्थान में ही होता है।
प्रश्न ५२- तीर्थंकर प्रकृति का उदय किस गुणस्थान में होता है?
उत्तर- तीर्थंकर प्रकृति का उदय सयोगी तथा अयोगी केवली के- तेरहवें चौदहवें गुणस्थान में होता है।
प्रश्न ५३- मोहनीय कर्म का उदय कौन से गुणस्थान में होता है?
उत्तर- मोहनीय कर्म का उदय तीसरे मिश्र गुणस्थान में होता है।
प्रश्न ५४- सम्यक्तव प्रकृति का उदय कौन से गुणस्थान में होता है?
उत्तर- सम्यक्तव प्रकृति का उदय चौथे- अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में होता है।
प्रश्न ५५- आनुपूर्वी कर्म का उदय किस गुणस्थान में होता है?
उत्तर- आनुपूर्वी कर्म का उदय मिथ्यात्व, सासादन और अविरत सम्यग्दृष्टि इन तीनों गुणस्थानों में होता है।
प्रश्न ५६- उदय योग्य प्रकृतियां कितनी है?
उत्तर- भेद की अपेक्षा १४८ प्रकृतियां उदय योग्य है। और अभेद की अपेक्षा १२२ प्रकृतियां उदय योग्य है।
प्रश्न ५७- सभी गुणास्थानों में उदय योग्य प्रकृतियों की संख्या बताओ?
उत्तर- मिथ्यात्व आदि चौदह गुणस्थानों में क्रम से ११६, १११, १००,, १०४, ८६, ८१, ७६, ७२, ६६, ५८, ४२, १२ प्रकृतियों का उदय होता है।
प्रश्न ५८- उदीरणा किसे कहते है?
उत्तर- उदयकाल के बाहर स्थित अर्थात् जिसके उदय का अभी समय नहीं आया है ऐसा जो कर्मद्रव्य उसको अपकर्षण के बल से उदयावली काल में प्राप्त करना उदीरणा है।
प्रश्न ५९- उदीरणा कितने प्रकार की है?
उत्तर- उदीरणा चार प्रकार की है- (१) प्रकृति उदीरणा (२) स्थिति उदीरणा (३) अनुुभाग उदीरणा (४) प्रदेश उदीरणा
प्रश्न ६०- उदय ओर उदीरणा में क्या अन्तर है?
उत्तर- उदय और उदीरणा में कोई विशेष अन्तर नहीं है। कर्म का फल भोगने के काल को उदय कहते हैं और अपक्व कर्मों के पाचन को उदीरणा कहते है।
प्रश्न ६१- पिंडशुद्धि किसे कहते है?
उत्तर- पिंड अर्थात् आहार की शुद्धि को पिंड शुद्धि कहते है।
प्रश्न ६२- पिण्डशुद्धि के कितने दोष है?
उत्तर- पिण्ड शुद्धि के आठ दोष है।
प्रश्न ६३- उन आठ दोषो के नाम बताओ?
उत्तर- (१) उद्गम दोष (२) उत्पादन दोष (३) एषणा दोष (४) संयोजना दोष (५) प्रमाण दोष (६) इंगाल दोष (७) धूमदोष (८) कारण दोष।
प्रश्न ६४- इन आठ भेद के उत्तर भेद कितने है?
उत्तर- आठ भेदों के उत्तर भेद ४६ है।
प्रश्न ६५- छयालीस दोष के भेद बताओ?
उत्तर- उद्गम के १६, उत्पादन के १६, एषणा दोष के १०, संयोजना, प्रमाण, इंगाल, धूम दोष ये सब मिलकर ४६ दोष है।
प्रश्न ६६- उद्गम दोष के १६ भेदों के नाम बताओ?
उत्तर- (१) औद्देशिक (२) अध्यधि (३) पूति (४) मिश्र (५) स्थापित (६) बलि (७) प्रावर्तित (८) प्राविष्करण (९) क्रीत (१०) प्रामृष्य (११) परिवर्त (१२) अभिघर (१३) उद्भिन्न (१४) मालारोहण (१५) आच्छेद (१६) अनीशार्थ।
प्रश्सन ६७- व्यवहार पल्य किसे कहते है?
उत्तर- चार कोस के योजन विस्तार वाले गोल गड्ढे में उत्तम भोग भूमि के एक दिन से लेकर सात दिन के उत्पन्न हुए मेंढे के करो़ड़ो रोमो के अविभागी खंड करके उन खंडित रोमाग्रों से उस एक योजन विस्तार वाले प्रथम गड्ढे को पृथ्वी के बराबर अत्यन्त सघना भरना चाहिए।
सौ-सौ वर्ष में एक-एक रोम खण्ड के निकालने पर जितने समय में वह गड्ढा खाली हो, उतने काल को व्यवहार पल्य कहते है।
प्रश्न ६८- उद्धार पल्य किसे कहते है?
उत्तर- व्यवहार पल्य की रोम राशि में से प्रत्येक रोमखण्ड को असंख्यात करोड़ वर्षो के जितने समय हो उतने खण्ड करके, उनसे दूसरे पल्य को भरकर पुन: एक-एक समय में एक-एक रोम खण्ड को निकाले ।
इस प्रकार जितने समय में वह गड्ढा खाली हो जाय उतने काल को उद्धार पल्य समझना चाहिए।
प्रश्न ६९- अद्धापल्य की परिभाषा बताओ?
उत्तर- उद्धार पल्य की रोमराशि में से प्रत्येक रोमखण्ड के असंख्यात वर्षों के समय प्रमाण खण्ड करके तीसरे गड्ढे के भरने पर और पहले के समान एक-एक समय में एक-एक रोमखण्ड को निकालने पर जितने समय मे वह गड्ढा खाली हो जाए उतने काल को ‘अद्धापल्य’ कहते है।
प्रश्न ७०- उद्धार पल्य से किसका प्रमाण जान जाता है?
उत्तर- उद्धार पल्य से द्वीप और समुद्रों का प्रमाण जान जाता है।
प्रश्न ७१- अद्धापल्य से किसका प्रमाण जान जाता है?
उत्तर- अद्धापल्य से नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की आयु तथा कर्मों की स्थिति का प्रमाण जान जाता है।
प्रश्न ७२- सागर की परिभाषा बताओ?
उत्तर- एक करोड़ को एक करोड़ से गुणा करने पर कोड़ा-कोड़ी बनता है ऐसे दस कोड़ा-कोड़ी पल्यों का एक सागर होता है।
प्रश्न ७३- व्यवहार सागर कितने पल्य का होता है?
उत्तर- दस कोड़ा कोड़ी व्यवहार पल्य का एक व्यवहार सागर होता है।
प्रश्न ७४- उद्धार सागर कितने पल्य का होता है?
उत्तर- दस कोड़ा-कोड़ी उद्धार पल्यों का एक उद्धार सागर होता है।
प्रश्न ७५- अद्धासागर कितने पल्य का होता है?
उत्तर- दस कोड़ा कोड़ी अद्धापल्यों का एक अद्धासागर होता है।
प्रश्न ७६- सागर से किसका प्रमाण जान जाता है?
उत्तर- भोगभूमि के मनुष्यों की आयु, नारकियों और देवों की आयु सागर प्रमाण है।
प्रश्न ७७- उद्योत किसे कहते है?
उत्तर- जिस कर्म के उदय से प्रकाश रूप शरीर हो उसे ‘उद्योत’ नाम कर्म कहते है।
प्रश्न ७८- ‘उद्योत’ नाम कर्म का उदय किसको रहता है?
उत्तर- ‘उद्योत’ नाम कर्म का उदय चन्द्र बिम्ब के विमान में स्थित एकेन्द्रिय बादर पृथ्वीकायिक जीव के होता है। जुगनू आदि के भी इस कर्म का उदय रहता है।
प्रश्न ७९- भागहार किसे कहते है?
उत्तर- संसारी जीवों के अपने जिन परिणामों के निमित्त से शुभकर्म और अशुभ कर्म संक्रमण करें अर्थात् अन्य प्रकृति रूप परिणमें उसको भागहार कहते है।
प्रश्न ८०- भागहार के कितने भेद है?
उत्तर- भागहार के पाँच भेद है- (१) उद्वेलन (२) विध्यात (३) अध:प्रवृत्त, (४) गुणसंक्रमण (५) सर्व संक्रमण
प्रश्न ८१- उद्वेलन प्रकृतियाँ कितनी और कौन सी है?
उत्तर- उद्वेलन प्रकृतियाँ १३ है। आहारकयुगल (आहारक शरीर, आहारक आंगोपांग) सम्यक्तव मोहनीय, मिश्र मोहनीय, देवगति का जोड़ा (देवगति, देवगत्यानुपूर्वी) नरक गति (नरक गति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग) उच्चगोत्र, और मनुष्यगति का युगल (मनुष्य गति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी ये १३ उद्वेलन प्रकृतियां है।
प्रश्न ८२- एषणा दोष के दस भेद के नाम बताओ?
उत्तर- (१) शंकित (२) म्रक्षित (३) निक्षिप्त (४) पिहित (५) संव्यवहरण (६) दायक (७) उन्मिश्र (८) अपरिणत (९) लिप्त (१०)छोटित।
प्रश्न ८३- उन्मिश्र दोष का लक्षण बताओ?
उत्तर- अप्रासुक द्रव्य से मिश्र आहार देना उन्मिश्र नाम का दोष है।
प्रश्न ८४- उपकरण किसे कहते है?
उत्तर- ‘उपक्रियतेऽनेनेत्युपकरणम् ’ जिसके द्वारा उपकार किया जाता है उसे उपकरण कहते है।
प्रश्न ८५- दिगम्बर जैन साधु के ज्ञान, संयम और शौच शुद्धि का उपकरण क्या है?
उत्तर- दिगम्बर जैन साधु के ज्ञान का उपकरण शास्त्र, संयम का जीव रक्षा का उपकरण पीछी और शौच-शुद्धि का उपकरण कमण्डलु है।
प्रश्न ८६- धर्म और अधर्म द्रव्य का उपकार क्या है?
उत्तर- ‘‘गतिस्थिुत्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरूपकार:’’ जीव और पुद्गल को चलने में सहायता देना धर्म द्रव्य का उपकार है। और जीव, पुद्गल को ङ्खहरने में सहकारी होना अधर्म द्रव्य का उपकार है।
प्रश्न ८७- आकाश द्रव्य का उपकार बताओ?
उत्तर- ‘आकाशस्यावगाह:’ समस्त द्रव्यों को अवकाश –स्थान देना आकाश द्रव्य का उपकार है।
प्रश्न ८८- पुद्गल द्रव्य का उपकार बताओ?
उत्तर –‘शरीर वाड्डा़मन:प्राणापान्ना: पुद्गलानाम्’ जीवों के प्रति शरीर, वचन मन और श्वासोच्छवास ये पुदगल द्रव्य के उपकार है।
‘सुखदुख जीवित मरणोपग्रहाश्च’ इन्द्रिय जन्य सुख-दुख, जीवन-मरण ये भी पुद्गल द्रव्य के उपकार हैं।
प्रश्न ८९- ‘काल’ द्रव्य का उपकार क्या है?
उत्तर- ‘वर्तना परिणामक्रियापरत्वा परत्वे च कालस्य’ वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल द्रव्य के उपकार है।
प्रश्न ९०- ‘उपगूहन’ का लक्षण बताओ?
उत्तर- स्वभाव से शुद्ध ऐसे रत्नत्रय स्वरूप मोक्षमार्ग में चलने वाले अज्ञानी-प्रमादी जनों से यदि कोई दोष हो जाये तो उसे दूर करना ( देना, प्रकट नहीं होने देना) उपगूहन है।
प्रश्न ९१- उपगूहन अंग में कौन प्रसिद्ध है?
उत्तर- उपगूहन अंग में जिनेन्द्र भक्त सेठ का नाम प्रसिद्ध है जिन्होंने ब्रह्मचारी के दोष को ढककर उपगूहन अंग पाला ।
प्रश्न ९२- ‘उपघात’ किसे कहते है?
उत्तर- जिस कर्म के उदय से बड़े सीगं, अथवा मोटा पेट इत्यादि अपने ही घातक अंग हो उसे ‘उपघात’ नामकर्म कहते है। जैसे- बारहसिंघा के सींग आदि ।
प्रश्न ९३- नय किसे कहते है?
उत्तर- प्रमाण से जाने हुए पदार्थ के एक देश को ग्रहण करने वाले ज्ञाता के अभिप्राय विशेष को नय कहते है।
प्रश्न ९४- नय के कितने भेद है? नाम बताओ।
उत्तर- नय के ९ भेद है- (१) द्रव्यार्थिक (२) पर्यायर्थिक (३)नैगम (४) संग्रह (५) व्यवहार (६) ऋजुसूत्र (७) शब्द (८) समभिरूढ़ (९) एवं भूत
प्रश्न ९५- उपनय किसे कहते है?
उत्तर- नय की शाखा को उपनय कहते हैं। अथवा जो नयों के समीप हो-नय सदृश मालूम पड़े वे उपनय है।
प्रश्न ९६- उपनय के कितने भेद है?
उत्तर- उपनय के तीन भेद है- (१) सद्भूत व्यवहार नय (२) असद्भूत व्यवहार नय (३) उपचरित असद्भूत व्यवहार नय।
प्रश्न ९७- उपचरित असद्भूत व्यवहार नय के भेद बताओ । उदाहरण सहित ।
उत्तर- उपचरित असद्भूत व्यवहारनय के भी तीन भेद है-
(१) स्वजाति उपचरित असद्भूत व्यवहारनय- जैसे स्त्री पुत्र आदि मेरे हैं।
(२) विजातीय उपचरित असदभूत व्यवहार नय – जैसे मकान, वस्त्र आदि पदार्थ मेरे हैं।
(३) स्वजाति विजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहार नय- जैसे देश, राज्य दुर्ग आदि मेरे है।
प्रश्न ९८- ‘विनय’ के कितने भेद है? नाम बताओ?
उत्तर- विनय के चार भेद है- (१) ज्ञान विनय (२) दर्शनविनय (३) चारित्र विनय (४) उपचार विनय।
प्रश्न ९९- ज्ञान विनय के भेद बताओ?
उत्तर- ज्ञान विनय के अर्थशुद्धि, व्यंजन शुद्धि, उभय शुद्धि, काल शुद्धि, विनय शुद्धि, उपधान, बहुमान और अन्हिव ये आङ्ग भेद है। इनका पालन करना और ज्ञानी की विनय करना ज्ञान विनय है।
प्रश्न १००- दर्शन विनय का लक्षण बताओ?
उत्तर- सम्यग्दर्शन के नि:शंकित आदि आठ अंगो का पालन करना और दर्शनधारी की विनय करना दर्शन विनय है।
प्रश्न १०१- चारित्र विनय का लक्षण बताओ?
उत्तर- चारित्र के अतिचारों को दूरकर चारित्र धारी की विनय करना तथा गुरू की प्रत्यक्ष और परोक्ष में मन-वचन-काय से विनय करना चारित्र विनय है।
प्रश्न १०२- उपचार विनय का लक्षण बताओ?
उत्तर- गुरूओं की वैयावृत्ति करना, उनके अनुकूल प्रवृत्ति करना आदि उपचार विनय है।
प्रश्न १०३- वर्तमान में मुख्य रूप से उपदेश कौन देते है? और प्रौणरूप से कौन देते है?
उत्तर- रत्नत्रय से विभूषित आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीन प्रकार के दिगम्बर मुनि ही मुख्यरूप से उपदेश देते हैं। गौणरूप से विद्वान श्रावक भी उपदेश देते है।
प्रश्न १०४- गुणभद्र स्वामी ने प्रवक्ता आचार्य के कौन-कौन से गुण बताएँ है?
उत्तर- गुणभद्र स्वामी ने प्रवक्ता आचार्य के निम्न १२ गुण बताए है-
बुद्धिमान, समस्त शास्त्रों के रहस्य का ज्ञाता, लोक व्यवहार से परिचित, आशारहित, प्रतिभावान, शांतचित्त, पहले ही उत्तर को देखकर रखने वाला, प्राय: प्रश्नों को सहन करने वाला, प्रभावशाली, पर को मनोज्ञ, पर की निंदा नहीं करने वाला, स्पष्ट और मधुर वचन बोलने वाला तथा गुणों का निधान ऐसा प्रवक्ता आचार्य होना चाहिए।
प्रश्न १०५- उपदेश् का फल बताओ?
उत्तर- उपदेश सुनकर श्रोता मिथ्यात्व, असंयम, प्रमाद और कषाय से डरकर यथाशक्ति हटकर मोक्षमार्ग में- सम्यक्तव, संयम और शमाभाव में प्रवृत्त हो जावे यही प्रवचन का- उपदेश का फल है।
प्रश्न १०६- उपदेश के फल के भेद बताओ?
उत्तर- उपदेश के फल के साक्षात् और परम्परा ऐसे दो भेद होते हैं।
प्रश्न १०७- उपदेश का साक्षात् फल बताओ?
उत्तर- (१) वक्ता का उपदेश ऐसा होना चाहिए कि श्रोतागण मिथ्यात्व को छोड़कर देव, शास्त्र, गुरू के परम भक्त बन जायें। इनमें पूज्य पुरूषों के प्रति आदर भाव और विनय प्रवृत्ति आ जावे तथा उद्दंड व अनर्गल प्रवृत्ति छूट जाए।
(२) वर्तमान के उपलब्ध जिनागम के प्रति अकाट्य श्रद्धा व वर्तमान के साधु वर्गों के प्रति असीम भक्ति उमड़ आवे।
(३) शक्तयनुसार चारित्र ग्रहण करने में प्रवृत्त हो जावें। अन्याय, अभक्ष्य और दुव्र्यसनों को छोड़ देवे। तथा देव पूजा, आहार दान, स्वाध्याय, आदि आवश्यक क्रियाओं में प्रमाद छोड़कर तत्पर हो जायें।
प्रश्न १०८- उपदेश का परम्परा फल क्या है?
उत्तर- उपदेश का परम्परा फल स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त कर लेना ही है।
प्रश्न १०९- ब्रह्मचारी के कितने भेद है? नाम बताओ?
उत्तर- ब्रह्मचारी के पाँच भेद है- (१) उपनय (२) अवलम्ब (३) अदीक्षा (४) गूढ़ (५) नैष्ठिक ।
प्रश्न ११०- उपनय ब्रह्मचारी का लक्षण बताओ?
उत्तर- जो मौंजी बन्धन विधि के अनुसार गणधर सूत्र (यज्ञोपवीत) को धारण कर उपासकाध्ययन आदि शास्त्रों का अभ्यास करते है और फिर गृहस्थ धर्म स्वीकार करते हैं उन्हें उपनय ब्रह्मचारी कहते है।
प्रश्न १११- श्रावकाध्याय संग्रह में कितने प्रकार की क्रियायें मानी है?
उत्तर- तीन प्रकार की क्रियायें मानी है- (१) गर्भान्वय क्रिया (२) दीक्षान्वय क्रिया (३) कत्र्रन्वय क्रिया ।
प्रश्न ११२- इन क्रियाग्नों के कितने-२ भेद है?
उत्तर- गर्भान्वय क्रिया त्रेपन, दीक्षान्वय क्रिया अड़तालीस और मत्र्रन्वय क्रिया सात हैं।
प्रश्न ११३- ‘उपनीति क्रिया’ में क्या होता है?
उत्तर- गर्भ से आङ्गवें वर्ष में बालक की ‘उपनीति क्रिया’ यज्ञोपवीत संस्कार क्रिया होती है।
प्रश्न ११४- उपपाद जन्म किसको होता है?
उत्तर- ‘देवनारकाणामुपपाद:’ देवों और नारकियों का उपपाद जन्म होता है।
प्रश्न ११५-उपपाद स्थान किसे कहते है?
उत्तर- स्वर्ग और नरक में जन्म के लिए विशेष नियत स्थानों को उपपाद स्थान कहते हैं।
प्रश्न ११६- देवों का जन्म कहां होता है?
उत्तर- देवों का जन्म् उपपाद शय्या पर होता है। अन्तमुहूर्त में ही देव नवयौवन सहित हो जाते हैं।
प्रश्न ११७- जन्म लेने के बाद देव सर्वप्रथम क्या करते है?
उत्तर- जन्म लेने के बाद देव अवधिज्ञान से सब जान लेते हैं और फिर सरोवर में स्नान करके वस्त्रालंकार से भूषित होकर जिनमंदिर में जाकर भगवान की पूजा करते हैं।
प्रश्न ११८- नारकी जीव कैसे जन्म लेता है?
उत्तर- नारकी जीव महापाप से नरक बिल में उत्पन्न होकर एक मुहूर्त काल में छहों पर्याप्तियों को पूर्णकर छत्तीस आयुधों के मध्य में औंधे मुँह गिरकर वहाँ से गेंद के समान उछलता है।
प्रश्न ११९-प्रथम पृथ्वी में नारकी कितने ऊपर उछलता है?
उत्तर- प्रथम नरक में नारकी सात योजन, छह हजार पाँच सौ धनुष प्रमाण ऊपर उछलता है।
प्रश्न १२०- भोग किसे कहते है? उदाहरण देकर समझाओ?
उत्तर- जो एक बार भोग कर छोड़ दी जाती है उसे भोग कहते हैं जैसे- भोजन, गंध आदि भोग है।
प्रश्न १२१- उपभोग किसे कहते है? उदाहरण बताओ।
उत्तर- जो भोगकर पुन: भोग में आती है उसे उपभोग कहते हैं। जैसे- वस्त्र आभूषण आदि उपभोग है।
प्रश्न १२२- गोम्मटसार ग्रन्थ में सत्य के कितने भेद बताएं हैं?
उत्तर- सत्य के दस भेद बताएं है।
प्रश्न १२३- सत्य के दस भेदों के नाम बताओ?
उत्तर- सत्य के दस भेदों के नाम इस प्रकार है-
(१) जनपदसत्य (२) सम्मति सत्य (३) स्थापना सत्य (४) नाम सत्य (५) रूप सत्य (६) प्रतीत्य सत्य (७) व्यवहार सत्य (८) संभावना सत्य (९) भाव सत्य (१०) उपमा सत्य
प्रश्न १२४- दस प्रकार के सत्य के दश दृष्टान्त बताओ?
उत्तर- दस प्रकार के सत्य के दश दृष्टान्त इस प्रकार है-
(१) भक्त (२) देवी (३) चन्द्रप्रभ प्रतिमा (४) जिनदत्त (५) श्वेत (६) दीर्घ (७) भात पकाया जाता है (८) शक्र जम्बूद्वीप को पलट सकता है। (९) पाप रहित ‘यह प्रासुक है ऐसा वचन (१०) पल्योपम।
प्रश्न १२५- उपमा सत्य किसे कहते है?
उत्तर- दूसरे प्रसिद्ध सदृश पदार्थ को उपमा कहते हैं। इसके आश्रय से जो वचन बोला जाय उसको उपमा सत्य कहते हैं। जैसे –पल्य ।
प्रश्न १२६- उपयोग किसे कहते है?
उत्तर- चेतना की परिणति विशेष का नाम उपयोग है। चेतना सामान्य गुण है और ज्ञानदर्शन ये दो इसकी पर्याय या अवस्थाएं है। इन्हीं को उपयोग कहते हैं।
प्रश्न १२७- उपयोग के कितने भेद है?
उत्तर- उपयोग के दो भेद है- (१) ज्ञानापयोग (२) दर्शनोपयोग
प्रश्न १२८- ज्ञानोपयोग के कितने और कौन से भेद है?
उत्तर- ज्ञानोपयोग के आङ्ग भेद हैं- (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) कुमतिज्ञान (५) कुश्रुतज्ञान (६) कुअवधिज्ञान (७) मन:पर्ययज्ञान (८) केवलज्ञान ।
प्रश्न १२९- दर्शनोपयोग के कितने और कौन से भेद है?
उत्तर- दर्शनोपयोग के चार भेद है- (१) चक्षुदर्शन (२) अचक्षुचर्शन (३) अवधिदर्शन (४) केवलदर्शन ।
प्रश्न १३०- व्यवहारनय से जीव का लक्षण क्या बताया है?
उत्तर – व्यवहारनय से बारह प्रकार का उपयोग सामान्यतया जीव का लक्षण है।
प्रश्न १३१- शुद्धनिश्चयनय से जीव का लक्षण क्या है?
उत्तर- शुद्ध निश्चयनय से जीव का लक्षण शुद्ध दश्रन ज्ञान ही है।
प्रश्न १३२- समवसरण में कितनी भूमियां मानी है?
उत्तर- समवसरण में आठ भूमियां मानी है।
प्रश्न १३३- समवसरण की आठ भूमियों के नाम बताओ?
उत्तर- (१) चैत्यप्रासाद भूमि (२) खातिकाभूमि (३) लता भूमि (४) उपवन भूमि (५) ध्वजाभूमि (६) कल्पभूमि (७) भवनभूमि (८) श्रीमण्डप भूमि।
प्रश्न १३४- उपवन भूमि में किस-किस वृक्ष के बगीचे है?
उत्तर- उपवन भूमि में पूर्व आदि के क्रम से अशोक, सप्तच्छद, चंपा और आम के बगीचे हैं।
प्रश्न १३५- समवसरण में चैत्यवृक्ष कितने ऊँचे हैं?
उत्तर- समवसरण में चैत्यवृक्ष तीर्थंकर देव की ऊँचाई से बारह गुने ऊँचे हैं।
प्रश्न १३६- समवसरण में चैत्यवृक्ष वनस्पतिकायिक है या पृथ्वीकायिक?
उत्तर- समवसरण में चैत्यवृक्ष वनस्पतिकायिक नहीं प्रत्युत पृथिवीकायिक रत्नों से निर्मित होते हैं।
प्रश्न १३७- उपवन भूमि में बनी वापिकाओं में स्नान करने से मनुष्य अपने कितने भाव देख लेता है?
उत्तर- उपवन भूमि में बनी वापिकाओं में स्नान करने से मनुष्य अपना एक भव देख लेता है।
प्रश्न १३८- उपवन भूमि में वापिकाओं में अपना मुख देखने से मनुष्य कितने भव देख लेता है?
उत्तर- उपवन भूमि में बनी वापिकाओं में अपना मुख देखने से मनुष्य अपने पूर्व के तीन, वर्तमान का एक और भविष्यत् के तीन ऐसे सात भव देख लेते हैं।
प्रश्न १३९- उपवन भूमि में कितनी नाट्यशालाएं है?
उत्तर- उपवन भूमि में सुवर्णमय बत्तीस नाट्यशालाएं है।
प्रश्न १४०- उपवास किसे कहते है?
उत्तर- जैनआगम के अनुसार चारों प्रकार के आहार का त्याग करना उपवास है।
प्रश्न १४१- प्रोषधोपवास किसे कहते है?
उत्तर- प्रत्येक मास की अष्टमी और चतुर्दशी को चारो प्रकार के आहार का त्याग करना तथा अष्टमी और चतुर्दशी के एक दिन पहले और एक दिन बाद एकाशन करना प्रोषधोपवास है।
प्रश्न १४२- आ. समन्तभद्र स्वामी ने उपवास के दिन किन क्रियाओं का त्याग करना बताया है?
उत्तर- आ. समन्तभद्र स्वामी ने रत्नकरण्डश्रावकाचार में लिखा है- जिस दिन उपवास हो उस दिन पाँचों पापों का त्याग करके आरंभ, गंध, माला, अलंकार, स्नान, अंजन, मंजन, नस्य आदि क्रियाओं का त्याग करना चाहिए।
प्रश्न १४३- उपवास के दिन क्या करना चाहिए?
उत्तर- उपवास के दिन शरीर से ममत्व दूर करने हेतु वैराग्य भाव धारण करना चाहिए। उपवास के दिन आलस्य रहित होकर शास्त्रों का पढना चाहिए। अति उत्कणठा से धर्मरूपी अमृत को सुनना चाहिए और अन्यों को भी धर्मश्रवण करना चाहिए। ज्ञान और ध्यान में तत्पर रहना चाहिए।
प्रश्न १४४- ‘उपशम’ किसे कहते है?
उत्तर- कर्मों के उदय को कुछ समय के लिए रोक देना उपशम कहलाता है।
प्रश्न १४५- उपशम का दूसरा लक्षण उदाहरण देकर समझाओ?
उत्तर- द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के निमित्त से कर्म की शक्ति प्रगट न होने को उपशम कहते हैं जैसे निर्मली के संयोग से मैले जल के मैल का एक ओर बैठ जाना।
प्रश्न १४६- औपशमिक भाव क्या है?
उत्तर- उपशम केवल मोहनीय कर्म का ही होता है अत: मोहनीय कर्म के उपशम से आत्मा के जो भाव हो वह औपशमिक भाव है।
प्रश्न १४७- औपशमिक भाव के कितने भेद है? नाम बताओ?
उत्तर- औपशमिक भाव के दो भेद हैं- (१) औपशमिक सम्यक्तव (२) औपशमिक चारित्र।
प्रश्न १४८- औपशमिक सम्यक्तव किसे कहते हैं ?
उत्तर- अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व और सम्यक्तव इन सात प्रकृतियों के उपशम से जो सम्यक्तव होता है उसे औपशमिक सम्यक्तव कहते है ।
प्रश्न १४९- औपशमिक चारित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर- चारित्र मोहनीय कर्म की अप्रत्याख्यानावरणानि २१ प्रकृतियों के उपशम से जो भाव होते हैं उसे औपशमिक चारित्र कहते हैं ।
प्रश्न १५०- औपशमिक चारित्रभाव कौन से गुणस्थान में होता हैं ?
उत्तर- औपशमिक चारित्रभाव ११वें गुणस्थान में होता है ।
प्रश्न १५१- उपशम सम्यक्तव के दो भेद कौन से हैं ?
उत्तर- १ प्रथमोपशम सम्यक्तव २ द्वितीयोपशम सम्यक्तव ।
प्रश्न १५२- प्रथमोपशम सम्यक्तव किसे कहते हैं ?
उत्तर- पहले मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से छूटने पर जो उपशम सम्यक्तव होता है उसे प्रथमोपशम सम्यक्तव कहते हैं ।
प्रश्न १५३- द्वितीयोपशम सम्यक्तव किसे कहते हैं ?
उत्तर- उपशम श्रेणी चढ़ते समय क्षयोपशम सम्यक्तव से जो उपशम सम्यक्तव होता है उसे द्वितीयोपशम सम्यक्तव कहते हैं।
प्रश्न १५४- लब्धि कितनी होती हैं ?
उत्तर- लब्धि ५ होती हैं ।
प्रश्न १५५- पाँच लब्धियों के नाम बताओ ?
उत्तर-१ क्षयोपशमलब्धि २ विशुद्धि लब्धि ३ देशनालब्धि ४ प्रायोग्यलब्धि ५ करणलब्धि ।
प्रश्न १५६- पाँच लब्धि में से कौन सी लब्धि अभव्य जीवों को नहीं होती ?
उत्तर- पाँचवी करण लब्धि अभव्य जीवों के नहीं होती हैं ।
प्रश्न १५७- क्षयोपशम लब्धि कब होती हैं ?
उत्तर- जब अशुभ कर्म प्रतिसमय अनंतगुनी कम-कम शक्ति को लिए हुए उदय में आते है तब क्षयोपशम लब्धि होती हैं ।
प्रश्न १५८- विशुद्धि लब्धि का लक्षण बताओ ?
उत्तर- क्षयोपशम लब्धि के प्रभाव से धर्मानुरागरूप शुभ परिणामों का होना विशुद्धि लब्धि है ।
प्रश्न १५९- देशनालब्धि क्या हैं ?
उत्तर- आचार्य वैगरह के द्वारा उपदेश का लाभ होना देशना लब्धि है ।
प्रश्न १६०- जहाँ उपदेश न प्राप्त हो वहाँ देशना लब्धि वैâसे प्राप्त होगी ?
उत्तर- जहाँ उपदेश न प्राप्त हो जैसे चौथे आदि नरकों में वहाँ पूर्वभव में सुने हुए उपदेश की धारणा के बल पर सम्यक्तव की प्राप्ति होती है । यह देशनालब्धि है ।
प्रश्न १६१- प्रायोग्यलब्धि किसे कहते हैं ?
उत्तर- क्षयोपशमलब्धि, विशुद्धिलब्धि और देशनालब्धि वाला जीव प्रतिसमय अधिक-अधिक विशुद्ध होता हुआ आयु कर्म के सिवा शेष कर्मों की स्थिति जब अन्त: कोटा-कोटी सागर प्रमाण बांधता है और विशुद्ध परिणामों के कारण पूर्व बन्धी हुई स्थिती संख्यात हजार सागर कम हो जाती है उसे प्रायोग्य लब्धि कहते हैं ।
प्रश्न १६२- करणलब्धि में कितने करण होते हैं ?
उत्तर- करणलब्धि में तीन करण होते हैं – १ अध:करण २ अपूर्वकरण ३ अनिवृत्तिकरण ।
प्रश्न १६३- किन प्रकृतियों के उपशम से उपशम सम्यक्तव प्रकट होता है ?
उत्तर- मिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व, सम्यक्तव और अनंतानुबन्धी क्रोधादि ४ इन ६ प्रकृतियों के उपशम से उपशम सम्यक्तव होता है ।
प्रश्न १६४- उपशम सम्यक्तव की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति कितनी है ?
उत्तर- उपशम सम्यक्तव की जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त है ।
प्रश्न १६५- गुणस्थान कितने होते है ?
उत्तर- गुणस्थान १४ होते हैं ।
प्रश्न १६६- ग्यारहवें गुणस्थान का नाम बताओ ?
उत्तर- उपशांत कषाय ।
प्रश्न १६७- उपशांत कषाय का लक्षण क्या है ?
उत्तर- निर्मली फल से युक्त जल की तरह अथवा शरद ऋतु में ऊपर से स्वच्छ हो जाने वाले सरोवर के जन की तरह सम्पूर्ण मोहनीय कर्म के उपशम से उत्पन्न होने वाले निर्मल परिणामों को उपशांत कषाय नामका ग्यारहवां गुणस्थान कहते हैं ।
प्रश्न १६८- इस गुणस्थान का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर- इस गुणस्थान का पूरा नाम ‘उपशांतकषाय वीतराग छद्मस्थ’ है ।
प्रश्न १६९- ‘छद्म’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर- छद्म’ शब्द का अर्थ है ज्ञानावरण और दर्शनावरण ।
प्रश्न १७०- छद्मस्थ किसे कहते है ?
उत्तर- जो जीव ज्ञानावरण, दर्शनावरण के उदय की अवस्था में पाये जाते हैं वे सब छद्मस्थ हैं ।
प्रश्न १७१- छद्मस्थ जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर- छद्मस्थ जीव दो प्रकार के होते हैं-१ सराग २ वीतराग
प्रश्न १७२- कौन से गुणस्थानवर्ती जीव सराग छद् मस्थ हैं और कौन से वीतराग छद्मस्थ ?
उत्तर- ग्यारहवें बारहवें गुणस्थानवर्ती जीव वीतराग छद्मस्थ और इनसे नीचे के सब सराग छद्मस्थ हैं ।
प्रश्न १७३- उपसर्ग किसे कहते है ?
उत्तर- ईष्र्या, राग, द्वेष, क्रोधादि कषायों के वशीभूत होका अन्य प्राणी को सताना उपसर्ग कहलाता है । पूर्वजन के वैर को याद कर कष्ट देना उपसर्ग है ।
प्रश्न १७४- भगवान पाश्र्वनाथ के ऊपर किसने उपसर्ग किया था ?
उत्तर- भगवान पाश्र्वनाथ के ऊपर कमठ के जीव ने उपसर्ग किया था ।
प्रश्न १७५- कमठ और मरुभूति कौन-कौन थे ?
उत्तर- कमठ और मरुभूति सगे भाई थे ।
प्रश्न १७६- कमठ और मरुभूति किस राजा के मंत्री थे ?
उत्तर-कमठ और मरुभूति पोदनपुर के राजा अरविन्द के मंत्री थे ।
प्रश्न १७७- कमठ को देशनिकाला क्यो आज्ञा हुई ?
उत्तर-कमठ ने मरुभूति की पत्नि के साथ व्यभिचार किया था इसलिए राजा ने उसे दंडित कर देश से निकाल दिया ।
प्रश्न १७८- देश से निकाल दिए जाने पर कमठ कहां गया ?
उत्तर- कमङ्ग तपआश्रम में जाकर कुतप करने लगा ।
प्रश्न १७९- अरविंद मुनिराज ने मरुभूति के जीव हाथी को कौन से व्रत दिए ?
उत्तर-अरविन्द मुनिराज ने मरुभूति के जीव हाथी को उपदेश देकर सम्यक्तव और पाँच अणुव्रत ग्रहण कराएं ।
प्रश्न १८०- अणुव्रत के प्रभाव से हाथी मरकर कहाँ गया ?
उत्तर- अणुव्रत के प्रभाव से हाथी मरकर बारहवें स्वर्ग में देव हो गया ।
प्रश्न १८१- कमठ का जीव जो मरकर कुक्कर सर्प हुआ था वह कहाँ गया ?
उत्तर- कमठ का जीव सर्प मरकर पाँचवे नरक चला गया ।
प्रश्न १८२- किस भव में पार्श्वनाथ के जीव ने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया ?
उत्तर-आठवें भव में आनन्द नामक राजा की पर्याय में पाश्र्वनाथ के जीव ने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया ।
प्रश्न १८३- भगवान पार्श्वनाथ के दस भव बताओ ?
उत्तर- १ मरुभूति २ हाथी ३ बारहवें स्वर्ग में देव ४ विद्याधर ५ अच्युत स्वर्ग का देव ६ वङ्कानाभि चक्रवर्ती ७ अहमिंद्र ८ आनंद राजा ९ आनत इंद्र १० भगवान पाश्र्वनार्थ ।
प्रश्न १८४- कमठ का जीव मर कर किस-किस गति में गया ?
उत्तर- कमठ का जीव मर सर्प हुआ फिर नरक गया, पुन: अजगर सर्प हुआ, पुन: नरक गया, पुन: भिल्ल हुआ, पुन: नरक गया, पुन:सिंह हुआ, पुन: नाक गया, वहाँ से आकर महीपाल राजा होकर पंचाग्नि तप करके शंबर नाम ज्योतिषी देव हुआ ।
प्रश्न १८५- मरुभूति का जीव उपसर्ग को सहन करके क्या बना ?
उत्तर- भगवान पाश्र्वनाथ ।
प्रश्न १८६- उपादान किसे कहते है ?
उत्तर- अंतरंग कारण को उपादान कहते है अथवा जो स्वयं कार्यरूप परिणत हो जावे उसे उपादान कहते हैं ।
प्रश्न १८७- निमित्त किसे कहते हैं ?
उत्तर-सहकारी कारण को निमित्त कहते है ।
प्रश्न १८८- क्या सम्यक्तव के बिना तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है ?
उत्तर- नहीं सम्यक्तव के बिना तीर्थंकर प्रकृति का बंध नहीं हो सकता है ।
प्रश्न १८९- ‘उपाधि’ किसे कहते हैं ?
उत्तर- व्यक्ति के गुणों के देखते हुए उन्हें सम्मान पत्र प्रदान करना उपाधि है ।
प्रश्न १९०- भरत चक्रवर्ती ने राजा श्रेयांस को कौन सी उपाधि से अलंकृत किया था ?
उत्तर- दानतीर्थ प्रवर्तक की उपाधि अलंकृत किया था ।
प्रश्न १९१- श्री नेमीचंद्र आचार्य को कौन सी उपाधि प्राप्त हुई थी ?
उत्तर- सिद्धान्त चक्रवर्ती की उपाधि प्राप्त हुई थी ।
प्रश्न १९२- बीसवी शताब्दी के प्रथम आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज की उपाधि बताओ ?
उत्तर- चारित्र चक्रवर्ती की उपाधि आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज को प्राप्त हुई ।
प्रश्न १९३- वर्तमान में गणिनी ज्ञानमती माताजी को कौन-कौन सी उपाधियां मिली हैै ?
उत्तर- युगप्रवर्तिका, चारित्रचन्द्रिका, आर्यिका शिरोमणी, श्रुततीर्थ प्रकाशिका, तीर्थोद्धारिका, वात्सल्यमूर्ति, विधानवाचस्पति, सिद्धान्त कल्पतरुकलिका, डी़ लिट़ , धर्ममूर्ति, राष्ट्रगौरव, विश्वविभूति आदि अनेक उपाधियां प्राप्त हैं ।
प्रश्न १९४- उपाध्याय परमेष्ठी का लक्षण बताओ ?
उत्तर- जिन्हें ग्यारह अंग और चौदह पूर्वों का या उस समय के सभी प्रमुख शास्त्रों का ज्ञान है जो मुनि संघ में साधुओं को पढ़ाते हैं वे उपाध्याय परमेष्ठी कहलाते हैं ।
प्रश्न १९५- उपाध्याय परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं ?
उत्तर- २५ मूलगुण ।
प्रश्न १९६- ग्यारह अंग के नाम बताओ ?
उत्तर- १ अचारांग २ सूत्रकृतांग ३ स्थानांग ४ समवायांग ५ व्याख्या प्रज्ञाप्ति ६ ज्ञातृकथांग ७ उपासका ध्ययनांग ८ अन्तकृद्दशांग ९ अनुत्तरोपपादिक १० प्रश्नव्याकरणांग ११ विपाक सूत्रांग ।
प्रश्न १९७- चौदहपूर्व के नाम लिखो ?
उत्तर- १ उत्पाद पूर्व २ अग्रामणीय पूर्व ३ वीर्यानुप्रवाद पूर्व ४ अस्तिनास्ति प्रवादपूर्व ५ ज्ञानप्रवादपूर्व ६ कर्मप्रावादपूर्व ७ सत्प्रवादपूर्व ८ आत्मप्रवादपूर्व ९ प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व १० विद्यानुवादपूर्व ११ कल्याणप्रवादपूर्व १२ प्राणानुवादपूर्व १३ क्रियाविशालपूर्व १४ लोकविन्दुसारपूर्व ।
प्रश्न १९८- धर्मध्यान का लक्षण बताओ ?
उत्तर- संसार, शरीर और भोगों से विरक्त होने के लिए या विरक्त होने पर उस भाव की स्थिरता के लिए जो प्रणिधान होता है उसे धर्मध्यान कहते हैं ।
प्रश्न १९९- धर्मध्यान के कितने भेद हैं ? नाम बताओ ।
उत्तर-धर्मध्यान के ४ भेद हैं- १ आज्ञा वियय २ अपाय वियय ३ विपाक वियय ४ संस्थान वियय ।
प्रश्न २००- धर्मध्यान के १० भेद किस ग्रन्थ में बताए हैं और वे १० भेद कौन से हैं ?
उत्तर- प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी ग्रन में धर्मध्यान के १० भेद भी माने हैं –
१ अपाय वियाय २ उपाय वियय ३ विपाक वियय ४ विराग वियय ५ लोक वियय ६ भव वियय ७ जीव वियय ८ आज्ञावियय ९ संस्थान वियय १० संसार वियय ।
प्रश्न २०१- धर्मध्यान कौन से गुणस्थान वाले जीवों के होता है ?
उत्तर- धर्मध्यान अविरत, देशविरत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत ( चौथे से सातवें गुणस्थान वाले ) जीवों के ही होता है ।
प्रश्न २०२- तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ के रचयिता कौन थे ?
उत्तर- तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ के प्रजेता श्री उमास्वामी जी आचार्य थे ।
प्रश्न २०३- तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ का दूसरा नाम क्या हैं ?
उत्तर- तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ का दूसरा नाम मोक्षशास्त्र है ।
प्रश्न २०४- तत्त्वार्थसूत्र की रचना किसके निमित्त से हुई ?
उत्तर- तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ की रचना द्वैपायक ब्राहमण नामक विद्वान के निमित्त से हुई ।
प्रश्न २०५- द्वैपायक विद्वान ने अपने घर के बाहर पहिए पर किस मंत्र को लिखकर छोड़ा था और उमास्वामी आचार्य ने उसमें क्या शब्द बढ़ाया था ?
उत्तर- द्वैपायक विद्वान ने अपने घर के बाहर पहिए पर ‘दर्शनज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:’ लिखकर छोड़ा था । और उमास्वामी आचार्य ने उसमें सम्यक् शब्द बढ़ाकर ‘सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग:’’ कर दिया था ।
प्रश्न २०६- ‘परिषह’ किसे कहते हैं ? और परिषह जप किसे कहते है ?
उत्तर-मोक्षमार्ग से च्युत न होने और कर्मों की निर्जरा के लिए जो मानसिक व शारीरिक पीड़ाए किसी मोक्षार्थी को आती हैं उनको परिषह कहते हैं और उनको समभावों से सह लेना ‘परिषह जय’ कहलाता है ।
प्रश्न २०७- परिषह कितने प्रकार की हैं ?
उत्तर- परिषह २२ प्रकार की है ।
प्रश्न २०८- २२ परिषहों के नाम बताओ ?
उत्तर-१ क्षुधा २ पिपासा ३ शीत ४ उष्ण ५ दंशभशक ६ नाग्न्य ७ अरति ८ स्त्री ९ चर्या १० निष्द्या ११ शय्या १२ आक्रोश १३ वध १४ याचना १५ अलाभ १६ रोग १७ तृण स्पर्श १८ मल १९ सत्कार २० पुरस्कार २१ प्रज्ञा २२ अज्ञान २३ अदर्शन ।
प्रश्न २०९- उष्ण परिषह एवं उष्ण परिषह जय का लक्षण बताओ ?
उत्तर- तीव्र ग्रीष्मकाल में तप्त मार्ग पर विहार करना उष्ण परिषह है ऐसा करने पर भी, जलते हुए वन के बीच रहने पर भी एवं अन्य ऐसे अनेक प्रसंग होने पर भी भेद विज्ञान के बल से समता परिणाम में स्थिर होने को उष्ण परिषह जय कहते हैं।
प्रश्न २१०- जन्म कितने प्रकार का होता हैं ? नाम बताओ ?
उत्तर- जन्म तीन प्रकार का होता है- १ गर्भजन्म २ सम्मूर्छन जन्म ३ उपपाद जन्म ।
प्रश्न २११- गुणयोनि के कितने भेद है ?
उत्तर-गुणयोनि के ९ भेद होते हैं ।
प्रश्न २१२- गुणयोनि के ९ भेद कौन से हैं ?
उत्तर- १ सचित्त २ शीत ३ संवृत ४ अचत्ति ५ उष्ण ६ विवृत ७ सचित्ताचित्त ८ शीतोष्ण ९ संवृतविवृत ।
प्रश्न २१३- आकृति योनि के कितने और कौन से भेद है ?
उत्तर- आकृति योनि के ३ भेद हैं-१ शंखावर्त २ कूर्मोन्नत ३ वंशपत्रे ।
प्रश्न २१४- कूर्मोन्नत योनि में किसका जन्म होता हैं ?
उत्तर- कूर्मोन्नत योनि में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, अर्धचक्रवर्ती व बलभद्र तथा अन्य भी महान पुरुष उत्पन्न होते हैं ।
प्रश्न २१५- साधारण मनुष्य कौन सी योनि में जन्म लेते है ?
उत्तर- वंशपत्र योनि में ।
प्रश्न २१६- अधिक से अकधक कुल कितनी योनियाँ होती हैं ?
उत्तर- ८४ लाख योनियां होती हैं ।
प्रश्न २१७- उत्पादन दोष के कितने भेद है ? नाम बताओ ?
उत्तर- उत्पादन दोष के १६ भेद हैं- १ धात्री दोष २ दूत ३ निमित्त ४ आजीव ५ वतीपक ६ चिकित्सा ७ क्रोधी ८ मानी ९ मायावी १० लोभी ११ पूर्वस्तुति १२ पश्चात् स्तुति १३ विद्या १४ मंत्र १५ चूर्णयोग १६ मूलकर्म ।
प्रश्न २१८- ‘उपयोगिता’ क्रिया का क्या लक्षण हैं ?
उत्तर- पर्व के दिन उपवास में रात्रि में प्रतिमायोग धारण करना ‘उपयोगिता’ क्रिया है ।
प्रश्न २१९- गर्भान्वय क्रिया के कितने भेद हैं ?,
उत्तर- गर्भान्वय क्रिया के त्रेपन भेद हैं ।
प्रश्न २२०- दीक्षान्वय क्रिया के कितने भेद हैं ?
उत्तर- दीक्षान्वय क्रिया के अड़तालीस भेद है ।
प्रश्न २२१- कत्र्रन्वय क्रियायें कितने प्रकार की हैं ?
उत्तर- कत्र्रन्वय क्रियायें सात प्रकार की हैं ।
प्रश्न २२२- दीक्षान्वय क्रियाओं में आङ्ग क्रियाओं के नाम बताओ ?
उत्तर- १ अवतार २ वृत्तलाभ ३ स्थानलाभ ४ गणग्रह ५ पूजाराध्य ६ पुण्ययज्ञ ७ दृढ़चर्या ८ उपयोगिता ।
प्रश्न २२३- ‘ उमास्वामी श्रावकाचार’ ग्रन्थ के रचयिता कौन है ?
उत्तर- ‘उमास्वामी श्रावकाचार’ ग्रन्थ के रचयिता आचार्य श्री ‘उमास्वामी’ जी हैं ।
प्रश्न २२४- उमास्वामी श्रावकाचार में किसका वर्णन है ?
उत्तर- उमास्वामी श्रावकाचार में श्रावक धर्म का वर्णन है ।
प्रश्न २२५- उमास्वामी श्रावकाचार ‘ग्रन्थ के अनुसार गृहचैत्यालय में कितनी बड़ी प्रतिमा विराजमान करना चाहिए ?,
उत्तर- गृहचैत्यालय में ११ अंगुल प्रमाण तक की प्रतिमा विराजमान करना चाहिए इससे बड़ी नहीं ।
प्रश्न २२६- श्रावक को पूजा किस दिशा में मुँह करके बैठकर करना चाहिए ?
उत्तर- श्रावक को पूर्व या उत्तर मुख करके बैठकर पूजा करना चाहिए ।
प्रश्न २२७- ग्रन्थकर्ता आ़ उमास्वामी जी ने चैत्यालय और प्रतिमा निर्माण करने का फल क्या बताया है ?
उत्तर- जो भव्य जीव एक अंगुल प्रमाण प्रतिमा की प्रतिमा कराकर नित्य पूजा करता है वह असंख्य पुण्य कर्मों का संचय करता है । उस प्रतिमा के विराजमान करने और ३ सभी पूजा करने के फल को इस संसार में कोई कह भी नहीं सकता है । और जो पुरुष बिम्बाफल के पत्ते के समान बहुत छोटा चैत्यालय बनाता है तथा उसमें जौ के समान छोटी सी प्रतिमा विराजमान करता है । इस प्रकार जो भगवान की पूजा करता है समझना चाहिए कि मुक्ति उसके अत्यन्त समीप ही आ चुकी है ।
प्रश्न २२८- श्रावकों को पूजन, दान, जप, होम, स्वाध्याय करते समय किन वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए ?
उत्तर-श्रावकों को पूजन, दान, जप, होम, स्वाध्याय करते समय खण्डित वस्त्र, गला हुआ वस्त्र, फटावस्त्र और मैलावस्त्र नही पहनना चाहिए ।
प्रश्न २२९- पूजन आदि करते समय खण्डित आदि वस्त्र पहनने से क्या फल मिलता है ?
उत्तर- पूजन आदि करते समय खण्डित आदि वस्त्र पहनने से सब क्रियायें निष्फल हो जाती हैं ।
प्रश्न २३०- उमास्वामी श्रावकाचार ग्रनथ के अनुसार दातार श्रावक के सात गुण कौन से है ?
उत्तर- दातार श्रावक के ७ गुण – १ इहलोक के किसी फल की इच्छ ना रखना २ क्षमा धारण करना ३ कपटन करना ४ ईष्र्या न रखना ५ विषाद नहीं करना ६ र्हिषत होना ७ अहंकार नहीं करना ।