मेरु की चूलिका के उत्तर कुरु क्षेत्रवर्ती मनुष्य के एक बालमात्र के अंतर से प्रथम स्वर्ग का प्रथम इंद्रक स्थित है। अर्थात् मेरु की चूलिका के ऊपर से एक बाल के अंतर से ऊर्ध्वलोक प्रारंभ होता है। यह ऊर्ध्वलोक १ लाख इकसठ योजन ४२५ धनुष, एक बाल, कम सात राजू प्रमाण है। अर्थात् मध्यलोक १ लाख ४० योजन ऊँचे सुमेरु प्रमाण है और चूलिका से प्रथम स्वर्ग में १ बाल का अंतर है एवं लोकशिखर के नीचे २१ योजन, ४२५ धनुष जाकर अंतिम इंद्रक है। अत:-
१०००००±४०±२१·१०००६१ योजन ४२५ ध.१ बाल, इतना प्रमाण सात राजु में कम हो गया है। ऊर्ध्वलोक के २ भेद-कल्प, कल्पातीत। १६ स्वर्गों को कल्प कहते हैं।
मेरु की चूलिका से १-१/२ राजु तक सौधर्म ईशान स्वर्ग हैं। १/२ राजु में ब्रह्म युगल, १/२ राजु में लांतव कापिष्ठ, १/२ राजु में शुक्र-महाशुक्र, १/२ राजु में शतार-सहस्रार, १/२ राजु में आनत-प्राणत,१/२ राजु में आरण-अच्युत, आगे १ राजु में नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश ५ अनुत्तर विमान हैं। १-१/२±१-१/२±१/२±१/२±१/२±१/२±१/२±१·७ राजु हुये।