एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को प्राप्त करने के लिए जो जीव का गमन होता है उसे विग्रहगति कहते है वह दो प्रकार की है मोड़े वाली और बिना मोड़े वाली ।
विग्रह गति के चार भेद है- इषुगति अर्थात् ऋजुगति, पाणिमुक्ता, लांगलिका, और गोमूत्रिका । ऋजुगति विग्रह रहित है और शेष विग्रह सहित होती है। धनुष से छूटे हुए बाण के समान मोड़रहित गति को ऋजुगति कहते है।
विग्रह गति में नियम से कार्मण योग होता है पर ऋजुगति में कार्मण योग न होकर औदारिक मिश्र और वैक्रियिकमिश्र काययोग होता है। ऋजुगति में आनुपूर्वी का उदय नहीं होता ।
ऋजुगति को सिद्ध भगवान प्राप्त करते हैं । जब जीव ज्ञानावरणादि आठ कर्मों को पूर्णत नष्ट कर अष्ट गुणों से सहित, नित्य, निरंजन परमात्म स्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं तब उसे सिद्ध गति की प्राप्ति हो जाती है। जहां किसी वस्तु विशेष की इच्छा नहीं, अनन्त सुख ही सुख विद्यमान है।