नैगम,संग्रह, व्यवहार,ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूत ये सात नय हैं, उनमें ऋजुसूत्र भी एक है। वस्तु के अनेक धर्मों में से किसी एक की मुख्यता कर अन्य धर्मों का विरोध नहीं करते हुए पदार्थ का जानना नय कहलाता है।
भूत और भावी पर्याय को छोड़कर जो वर्तमान स्थूल पर्याय का ही ग्रहण करता है उसे ऋजुसूत्र नय कहते है।ऋजुसूत्र नय के दो भेद है- सूक्ष्म ऋजुसूत्र व स्थूल ऋजुसूत्र । अर्थपर्याय को विषय करने वाला शुद्ध ऋजुसूत्र नय है। वह प्रत्येक क्षण में परिणमन करने वाले समस्त पदार्थों को विषय करता हुआ अपने विषय से सादृश्यसामान्य व तद्भावरूप सामान्य को दूर करता है। जो अशुद्ध ऋजुसूत्र नय है वह चक्षु इन्द्रिय की विषयभूत व्यञजन पर्यायों को विषय करने वाला है।
सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय एक समय अवस्थायी पर्याय को विषय करता है और स्थूल ऋजुसूत्र की अपेक्षा मनुष्यादि पर्यायों में स्व स्व आयुप्रमाणकाल पर्यन्त ठहरती है। ऋजुसूत्र नय शुद्ध पर्यायार्थिक है।