गौरव या गारव तीन प्रकार का है। शब्द गौरव, ऋद्धि गौरव और सात गौरव । जहां वर्ण का उच्चारण का गौरव किया जाय वह शब्द गारव है। शिष्य, पुस्तक, कमण्डलु, पिच्छी या पट्ट आदि द्वारा अपने को ऊंचा प्रकट करना ऋद्धि गारव है। भोजन पान आदि से उत्पन्न सुख की लीला से मस्त होकर मोह मद करना सात गौरव है।
अथवा ऋद्धि का त्याग करने में असमर्थ होना, ऋद्धि में गौरव समझना, परिवार में आदर करना, प्रिय भाषण करके और उपकरण देकर परकीय वस्तु अपने वश में करना इसको ऋद्धि गौरव कहते है। इष्ट रस का त्याग न करना, अनिष्ट रस में अनादर रखना इसको रस गौरव कहते है। अतिशय भोजन करना, अतिशय सोना इनको सात गौरव सात गौरव कहते है इन दोषों की आलोचना करनी चाहिए ।