तपश्चरण के प्रभाव से कदाचित् किन्हीं योगीजनों को कुछ चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त हो जाती है उन्हें ऋद्धि कहते हैं। इसके अनेको भेद- प्रभेद है।मूल रूप से ऋद्धि के आठ भेद है- बुद्धि ऋद्धि, विक्रिया ऋद्धि, क्रिया ऋद्धि, तप ऋद्धि, बल ऋद्धि, औषधि ऋद्धि, रस ऋद्धि और क्षेत्र ऋद्धि ।
बुद्धि ऋद्धि – उसके १८ भेद है- अवधिज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान, केवलज्ञान, बीजुबुद्धि, कोष्ठ, पदानुसारि, संभिन्नश्रोतृत्व, दूरास्वादनत्स्व, दूरस्पर्श, दूरघ्राण, दूरश्रवण, दूरदर्शन, दशपूर्वित्व, चौदहपूर्वित्व, निमित्तऋद्धि, प्रज्ञाश्रमण, प्रत्येकबुद्धि और वादित्व।
विक्रिया ऋद्धि – अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व, वशित्व, अप्रतिघान, अन्तर्धान और कामरूप इस प्रकार के ग्यारह भेदों से युक्त विक्रया नामक ऋद्धि तपोविशेष से श्रमणों को हुआ करती है। क्रिया ऋद्धि चारणत्व व आकाशगामित्व के भेद से दो प्रकार की है । उग्र तप, दीप्ततप, तत्ततप, महातप , घोरतप, घोरपराक्रम, अघोरब्रह्मचारित्व के भेद से तप ऋद्धि सात प्रकार की हैै । मन, वचन, काय के भेद से बल ऋद्धि तीन प्रकार की है। असाध्य भी सर्व रोगों की निवृत्ति की हेतुभू औषध ऋद्धि आङ्ग प्रकार की है- आमर्ष, क्ष्वेलौषधि, जल्लौषधि, मलौषधि, विप्रुषौषधि, सर्वोषधि, वचननिर्विष और दृष्टिनिर्विष । रस ऋद्धि छ: प्रकार की है- आशीविष, दृष्टिविष, क्षीरस्रवी, मधुस्रवी, अमृतस्रवी और सर्पिस्रवी ।
इन ऋद्धियों एवं उसके फल का विस्तृत वर्णन पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने चौसठ ऋद्धि विधान (२५० हस्तलिखित ग्रन्थों में से एक) में विस्तारपूर्वक किया है। विस्तृत वर्णन हेतु देखें चौसठ ऋद्धि विधान ।