-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न चन्दनामती
कैसे प्रभु प्रगटे पर्वत पर, सबसे ऊँची प्रतिमा बनकर।
चमत्कार हुआ भारत भू पर, मानो इसे डिवाइन पावर।।
जय हो ऋषभगिरि के अधिनाथ, बोलो जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।१।।
दिव्यशक्ति इक गणिनी माता, जिनका नाम ज्ञानमती माता।
इनकी सुन्दर गौरव गाथा, जिनके पद में झुके हर माथा।।
इनसे मिले ऋषभगिरि के अधिनाथ, बोलो जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।२।।
सन् उन्निस सौ छ्यिानवे में, मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र में।
चातुर्मास हुआ माता का, शरदपूर्णिमा दिन पावन था।।
ध्यान में आये प्रभु आदिनाथ, बोलो जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।३।।
तब माँ ज्ञानमती ने बताया, प्रतिमा प्रगट करो समझाया।
इक सौ अठ फुट ऊँची हो काया, पूर्वमुखी हो यह भी बताया।।
ये प्रभु होंगे तीरथनाथ, बोलो जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।४।।
प्रात:काल मुझे बतलाया, मेरे मन आश्चर्य समाया।
मोतीसागर पीठाधीश जी, एवं ब्रह्मचारी रवीन्द्र जी।।
शिष्य त्रिवेणी कहे जय जय मात, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।५।।
गुरु माता ने करी घोषणा, पहुँच गई जन जन में सूचना।
सब जन का विश्वास परम था, कार्य पूर्ण तो अवश्य ही होगा।।
क्योंकि प्रेरिका हैं ज्ञानमती मात, बोलो जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।६।।
वह पावन इतिहास दिवस था, स्मरण रखो सब ही उस दिन का।
पर्वत पर पाषाण मिल गया, सिद्धक्षेत्र का भाग्य खिल गया।।
बन गये उसमें प्रभु आदिनाथ, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।७।।
ऋषभदेव प्रभु का क्या परिचय, यहाँ संक्षेप में जानेंगे सब।
आदम बाबा आदिब्रह्मा, ये हैं प्रजापति जगदानंदा।
इस धरती के प्रथम मुनिनाथ, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।८।।
पुण्य पुरुष की पुण्य कथा है, सुनके इसे मिट जाती व्यथा है।
दूर से ही जैसे रवि किरणें, धरती का अंधेरा हर लें।
वैसे ही यह भी कथा है सुखकार, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।९।।
तर्ज-वीर महावीर बोलो, जय जय महावीर
जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ, जय जय मांगीतुंगी ऋषभगिरि के अधिनाथ।
इनकी प्रतिमा बनी हैं जहाँ पर, भव्यात्मन्! हम भी चलें वहाँ पर।
ईसवी सन् की इक्कीसवीं सदि, धन्य हुई इसे मिलीं ज्ञानमती।।
इस सदि ने पाया आदिनाथ, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।१।।
अनुसंधान हुआ पाषाण का, शुरू हुआ काम मूर्ति निर्माण का।
सन् दो हजार दो में शुभ घड़ी आई, प्रथम शिलापूजन करवाई।।
सिंघपति को यह मिला सौभाग्य, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।२।।
बड़े बड़े वास्तुविद् आये, इंजीनियर मशीनें लाए।
पत्थर कटने लगा पर्वत पर, खाई में गिरा लाखों ट्रक पत्थर।।
दश वर्षों में बना तब काम, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदीनाथ।।३।।
इधर काम चलता था गिरि पर, प्रभु का नाम जपें माताजी उधर।
पूजा विधान अखंड कराए, बीस बरस तक रुकने न पाए।।
यह सब शक्ति थी इनके साथ, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।४।।
माँ की माला जनता का माल, दोनों से संस्कृत हुई मालामाल।
केवल जैन दिगम्बर जनता, से धन लेकर किया खर्चा।।
उससे ही बने त्रिलोकी नाथ, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।५।।
दो हजार बारह सन् आया, दिवस पचीस दिसम्बर पाया।
सोने की छेनी लेकर पहुँचे, स्वामी रवीन्द्रकीर्ति पर्वत पे।।
किया शुरू मस्तक से कार्य, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदीनाथ।।६।।
प्यारे भाइयों एवं बहनों!
आप लोग समझ गये होंगे कि सन् २००२ से पर्वत पर शिला काटने का कार्य चला। बड़ी-बड़ी मशीनों से लाखों ट्रक पत्थर कटकर खाई में गिरता रहा पुन: १० वर्षों के बाद सन् २०१२ में मूर्ति बनाने लायक लगभग १३० फुट का पाषाण शिलाखण्ड निकल आया और उसमें २५ दिसम्बर २०१२ को सोने की छेनी-हथौड़ी से स्वामी रवीन्द्रकीर्ति जी ने मूर्ति बनाने का काम शुरू किया।
पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी उस समय हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप स्थल पर विराजमान थीं, वे वहीं से भगवान के शीघ्र पाषाणसे भगवान बनने की भावना से ‘‘ॐ ह्रीं श्री ऋषभदेवाय नम:’’ मंत्र की लाखों-करोड़ों माला पेâरती रहीं। उनकी तपस्या का प्रभाव हम सभी ने साक्षात् देखा है अत: सभी मिलकर बोलेंगे-
तर्ज-हम जैन कुल में जन्मे हैं……..
गणिनी ज्ञानमती माता पर, अभिमान करो रे।
ये तो जैन कुल की शान हैं, गुणगान करो रे।।टेक.।।
इनने भारतीय संस्कृति की शान बढ़ाई,
ऋषभदेव प्रभु की सबसे बड़ी मूर्ति बनाई।।
मूर्ति प्रेरिका इस माता पर, अभिमान करो रे।
ये तो जैन कुल की शान हैं, गुणगान करो रे।।१।।
प्रतिमा निर्माण के मध्य अनेकानेक चमत्कार हुए। दिगम्बर जैन समाज के अमीर-गरीब सभी ने इसमें द्रव्य लगाकर आशातीत सुख-सम्पत्ति को प्राप्त किया।
एक बार की बात है-एक रिटायर्ड इंजीनियर श्रावक ने हस्तिनापुर में स्वामीजी से कहा कि मैं १ लाख ८ हजार रुपये की राशि देकर प्रतिमा निर्माण के शिलालेख में अपने परिवार का नाम लिखवाना चाहता हूँ, किन्तु स्वामीजी! मुझे केवल १५ हजार रुपये पेंशन के मिलते हैं अत: मैं यदि तीन वर्ष की बजाय यह राशि ६-७ वर्ष में जमा करा दूँ तो क्या आप मुझे ऐसा करने की स्वीकृति देंगे ?
दयालु प्रकृति के रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी ने उत्तर दिया-ठीक है आपकी ऐसी इच्छा है तो हमें स्वीकार है। फिर उन श्रावक महानुभाव के साथ क्या चमत्कार होता है, जानिए-
तर्ज-णमोकार णमोकार…..
आदीनाथ आदीनाथ, ऋषभदेव आदीनाथ…..पुरुदेव आदिनाथ
श्रद्धा भक्ति से दिये दान का है अतिशय रेकार्ड। आदिनाथ………
छह वर्षों में देने की जो इच्छा थी श्रावक की।
छह महिने में ही लाकर के दे दी उनने राशी।।
बोले मेरा बहुत पुराना धन मिल गया है आज।
आदीनाथ आदीनाथ, ऋषभदेव आदीनाथ।।१।।
बंधुओं! यह कथा है इक्कीसवीं सदी के एक ऐसे स्वर्णयुग की, जिसमें विश्व के सबसे बड़ी प्रतिमा निर्माण का महत्तम कार्य हुआ और सारे संसार ने आस्था-पारस आदि टी.वी. चैनलों के माध्यम से तिल-तिल करते बढ़ते भगवान ऋषभदेव को देखा तथा अपनी शक्ति के अनुसार धनराशि भी विशालकाय मूर्ति निर्माण ट्रस्ट को प्रदान कर पुण्य का अर्जन किया।
आपने टी.वी. चैनल में एक गीत भी खूब सुना और गाया है-
सबसे बड़ी मूर्ति का, मांगीतुंगी तीर्थ का, दुनिया में नाम हो रहा है,
मूर्ति का निर्माण हो रहा है-२।।टेक.।।
देखो जाके पास में, भक्ति लेके साथ में, सबसे बड़ा काम हो रहा है,
मूर्ति का निर्माण हो रहा है-२।।१।।
प्रतिमा निर्माण के मध्य एक दिन एक बड़ा सा शेर-शेरनी और उसका बच्चा ऐसे तीन शेर आये, कार्य करने वाले शिल्पी एवं मजदूर लोग कुछ डरे किन्तु वहाँ उपस्थित इंजीनियर सी. आर. पाटिल-पुणे ने भगवान ऋषभदेव और ज्ञानमती माताजी की जोरदार जय बोलते हुए उन लोगों से कहा-भैय्या! डरो मत ये शेर यहाँ भगवान को देखने आये हैं, तुम्हारा ये कुछ नहीं बिगाड़ेंगे, क्योंकि हमारी आराध्य पूज्य ज्ञानमती माताजी सभी की कुशलता के लिए माला फेर रही हैं और यहाँ पर्वत पर उन्होंने पूरी सुरक्षा का मंत्रकवच भी पहना दिया है……..आदि।
बात बिल्कुल सच हुई, तीनों शेर थोड़ी देर वहाँ शान्त भाव से रुके और कुण्ड में भरा शीतल जल पीकर कहाँ चले गये, पता नहीं।
‘‘जय बोलो ऋषभदेव चमत्कारिक भगवान की जय’’। ‘‘मूर्ति निर्माण की सम्प्रेरिका पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की जय’’
आगे और क्या होता है, सुनिए-
तर्ज-ऐसी लागी लगन…………
शेर आते रहे, और जाते रहे, वे तो प्रभु पद की महिमा बताते रहे।
ऋषभगिरि पर कई बार शेर दिखे।
जाने वे देवता शेर बन आते थे।।
बिन सताए किसी को वे जाते रहे……..शेर आते रहे…।।१।।
जैन शासन की महिमा कही यह ही है।
शेर अरु गाय इक घाट जल पीते हैं।।
प्रभु निकट प्रभु भी मैत्री दिखाते रहे…..शेर आते रहे…….।।२।।
अर्थात् शेर तो कई बार वहाँ आते दिखाई पड़े, किन्तु कभी किसी को कोई कष्ट नहीं दिया।
बंधुओं!
इसी बीच एक दिन यात्रा को आई एक अम्मा जी पर्वत पर पहुँची, वहाँ प्रतिमा निर्माण से निकलते हुए एक पत्थर को उसने उठाया और बड़ी श्रद्धापूर्वक वह उसे अपने घर ले गई। पुन: सन् २०१५ में जब पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी मांगीतुंगी में विराजमान थीं, वे अम्मा जी पुन: मांगीतुंगी पहुँची और सभा में अपने चमत्कारिक अनुभव का बखान करते हुए कहने लगीं-
तर्ज-मैं क्या करूँ राम मुझे……
मैं क्या कहूँ भाई, चमत्कार हो गया।
मैं क्या कहूँ बहनों, मुझे उपहार मिल गया…..हाँ उपहार मिल गया।
बनती हुई मूर्ति का, इक पत्थर लेकर मैं गई।
पानी में डाला फिर उस पानी को मैं पी गई।।
मेरा घुटना ठीक हुआ, चमत्कार हो गया।।मैं क्या….।।१।।
इक भैय्या को पानी दिया, पथरी निकल गई।
माइग्रेन की पीड़ा इक बहन की निकल गई।।
मूर्ति की ऊर्जा का चमत्कार हो गया।।मैं क्या कहूँ भाई….।।२।।
बोलिए चमत्कारिक बाबा, दुनिया के सबसे बड़े भगवान ऋषभदेव की जय।
जिनधर्म के श्रद्धालु भक्तों! ऐसे चमत्कारिक भगवान के एक छोटे से पाषाण से यदि इतने चमत्कार देखे गये हैं, तो सोचिए कि वह सर्वोच्च प्रतिमा कितनी चमत्कारिक होगी, तो आपको एक बार उनके दर्शन करके अपनी मनोकामना अवश्य पूर्ण करनी चाहिए।
देखो! यूँ तो मांगीतुंगी में महाराष्ट्र की यह सह्याद्री पर्वत माला सैकड़ों किलोमीटर लम्बी फैली हुई है किन्तु इस पावन सिद्धक्षेत्र पर समुद्री सतह से ३६०० फुट ऊपर मूर्ति का यह अखण्ड पाषाण मिलना ही सबसे बड़ा चमत्कार है। इस विषय में मेरे द्वारा सन् १९९० में लिखा गया एक गीत जो पूरी समाज में बहुत प्रसिद्ध हुआ है, यहाँ प्रसंगोपात्त बिल्कुल सत्य प्रतीत होता है-
नाम तिहारा तारण हारा, कब तेरा दर्शन होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।
पृथ्वी के सुन्दर परमाणु सब तुझमें ही समा गये।
केवल उतने ही अणु मिलकर, तेरी रचना बना गये।।
इसीलिए तुम सम सुन्दर नहिं कोई नर सुन्दर होगा।
तेरी प्रतिमा इतनी सुन्दर, तू कितना सुन्दर होगा।।१।।
एक दिन सन् २०१६ में सम्पन्न हुए पंचकल्याणक महोत्सव के बाद एक उदयपुर (राज.) की तरफ का अजैन व्यक्ति मेरे पास आया और उसने मुझे बताकर अचम्भित कर दिया। उसने बताया कि मैं आपकी मूर्ति बनाने वाले पहाड़ पर पोकलैण्ड मशीन की गाड़ी चलाने वाला ड्राइवर हूँ।
वह बोला-माताजी! मैं जब शुरू में पोकलैण्ड के अंदर ड्राइवर सीट पर बैठा तो बहुत डर गया और सोचने लगा कि यहाँ काम बड़ा खतरे का है, अगर जरा सी गाड़ी अनबैलेंस हो गई तो मैं कहाँ गिरूँगा, मेरा क्या होगा, मेरी घर गृहस्थी वैâसे चलेगी……इत्यादि।
फिर जानिए उसके साथ क्या चमत्कार होता है-
तर्ज-ए री छोरी बांगड़वाली……….
ऋषभगिरि मांगीतुंगी में अतिशय मैंने देखा है-२।।टेक.।।
ज्यों ही सोचा मन के अंदर, मुझे काम नहिं करना है।
खतरे का यह काम छोड़कर, जा अपने घर रहना है।।
तभी सामने ऋषभदेव को, आते मैंने देखा है।।ऋषभगिरि…।।१।।
एक नहीं दो तीन बार, साक्षात् प्रभू का दर्श हुआ।
कहा उन्होंने मत जा बच्चे, बता तुझे क्या कष्ट हुआ।।
फिर तो भाग गया सारा डर, चमत्कार यह देखा है।।ऋषभगिरि…।।२।।
बंधुवर! उस ड्राइवर ने बताया कि मुझे तो भगवान का साक्षात् दर्शन और आशीर्वाद मिला, फिर तो मैंने मूर्ति का निर्माण पूरा होने तक काम किया और आज मैं पूर्ण स्वस्थरूप में अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा हूँ।
‘‘जय बोलिए परम चमत्कारिक विश्व के सबसे बड़े ऋषभदेव भगवान की जय’।।
इस प्रकार के अनेक चमत्कारिक अनुभवों को हम लोगों ने सुना और साक्षात् देखा भी है। यहाँ पर विषय को ज्यादा न बढ़ाकर अब आपको ले चलती हूँ। प्रतिमा की पूर्णता और पंचकल्याणक महाप्रतिष्ठा की ओर-
जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ-२……..
सिर मुख बनना शुरू हुआ जब, देख देख आश्चर्यचकित सब।
पुण्यमयी पाषाणखण्ड पर, पुण्यवान शिल्पी चढ़े ऊपर।।
ठन ठन छन छन करी आवाज, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।१।।
बहुत कठोर था पत्थर प्रभु का, डेढ़ वर्ष में बना सिर मुख था।
नयन कपोल दिखे अति सुन्दर, मानो प्रगटे मरुदेवी उर।।
शिल्पी नाठा का भी जग गया भाग्य, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।२।।
जब अवयव दिखने लगे प्रभु के, पारसचैनल से देखा सबने।
पंचकल्याणक की करें प्रतीक्षा, मांगीतुंगी जाने की इच्छा।।
भक्तों की दृष्टि में बसे जिननाथ, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।३।।
एक दिवस फिर ऐसा आया, गणिनी माता ने बिगुल बजाया।
दो हजार चौदह ईसवी सन् शरदपूर्णिमा तिथि थी उत्तम।।
जम्बूद्वीप से गूंजा नाद, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।४।।
दो हजार सोलह में होगा, महाबिम्ब का महोत्सव होगा।
माघ सुदी तृतिया से दशमी, ग्यारह से सत्रह थी फरवरी।।
झण्डारोहण से करो शुरूआत, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ पूजा।।५।।
पुन: पूज्य माताजी अपनी शारीरिक अशक्तता देखते हुए कहने लगीं-
संघ चतुर्विध खूब बुलाओ, मुझको टी.वी. में दिखलाओ।
ट्रस्ट को आशिर्वाद है मेरा, यहीं से प्रभु पद नमन है मेरा।।
मेरे हृदय में हैं त्रिभुवननाथ, जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ।।६।।
बंधुओं!
पूरे देश में पंचकल्याण महामहोत्सव की तारीखें घोषित होते ही महाहर्ष की लहर दौड़ गई और चारों ओर से आवाजें आने लगीं कि पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी का सान्निध्य इस महोत्सव में अवश्य होना चाहिए किन्तु माताजी की शारीरिक स्थिति देखते हुए हम संघ के लोग भी अधिक आग्रह की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे।
भक्तों के उत्साह को देखकर मेरे शब्दों ने एक गीत का रूप धारण किया और वह टी.वी. पर आया तो सबके मनमयूर नाचने लगे-
मांगीतुंगी तीर्थ से आमंत्रण आया है, हम सब मांगीतुंगी जाएंगे।
मांगीतुंगी जाएंगे, वहाँ पंचकल्याण रचाएंगे।।मांगीतुंगी…….।।टेक०।।
विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा, पर्वत पर वहाँ प्रगट हुई।
ऋषभदेव भगवान की इक सौ अठ फुट प्रतिमा राज रही।।
उसी के पंचकल्याणक का अब अवसर आया है, हम सब मांगीतुंगी जाएंगे।।१।।
आखिर हम सबके सौभाग्य ने साथ दिया और मार्च २०१५ में एक दिन पूज्य माताजी के मुख से निकला-
चलो, अपन भी चलें प्रभु ऋषभदेव के पास मांगीतुंगी, शरीर तो नश्वर है ही, जो होगा सो देखा जायेगा। इतने बड़े प्रभु के दर्शन करके मेरा जनम सफल हो जायेगा। मेरी प्रेरणा का वृक्ष सामने प्रगट होकर खड़ा है। अब भगवान मुझे शक्ति दे और मैं अपने परमपिता के दर्शन कर सकुँ , ४-५ महीने की मेरी यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न हो, यही भगवान शांतिनाथ से प्रार्थना है।
पुन: १७ मार्च २०१५ चैत्र शुक्ला द्वादशी को वे जब संघ सहित हस्तिनापुर-जम्बूद्वीप से मांगीतुंगी के लिए मंगल विहार करती हैं तो अनेकानेक भक्तों की आँखों में खुशी और दु:ख से मिश्रित आंसू थे।
उस समय सबके मुख से निकल पड़ा-
बड़े-बड़े बाबा ने बड़ी माता को बुलाया है,
माता मांगीतुंगी जाएंगी।
मांगीतुंगी जाएंगी-वहाँ पंचकल्याण कराएंगी।।बड़े-बड़े…..।।
प्यारे भक्तों! जैन साधुओं का विहार हर प्राणी के लिए हितकारी होता है पुन: ज्ञानमती माताजी जैसी अलौकिक साध्वी के संघ विहार से उत्तरप्रदेश–मध्यप्रदेश–राजस्थान और महाराष्ट्र के विभिन्न अंचलों में आशातीत धर्मप्रभावना हुई। ग्वालियर-सोनागिरि-इंदौर आदि महानगरों में तो पूज्य माताजी को साक्षात् सरस्वती मानकर उनके प्रवचनों का खूब लाभ प्राप्त किया।
बीच-बीच में पूज्य माताजी को थोड़ी-थोड़ी अस्वस्थता भी आई लेकिन सभी बाधाओं को पार करके वे हम सबको साथ लेकर ३० जुलाई २०१५ आषाढ़शुक्ला चतुर्दशी को मांगीतुंगी पहुँच गई और बड़े धूमधाम से संघ का मंगल पदार्पण मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र पर हुआ।
इस संघ विहार के संघपति बनने का सौभाग्य प्राप्त किया औरंगाबाद महाराष्ट्र के श्रावकरत्न श्री प्रमोद कुमार जम्मनलाल जैन कासलीवाल एडवोकेट ने। मांगीतुंगी के ऋषभगिरि पर्वत पर उस समय प्रतिमा का निर्माणकार्य बहुत तेज गति से चल रहा था।
जिस दिन वे मांगीतुंगी पधारीं, उस दिन तो वर्षायोग स्थापना का दिन था, अत: संघ ने वर्षायोग स्थापना विधि सम्पन्न किया। पुन: १ अगस्त २०१५ श्रावण कृष्णा एकम् को वे बड़ी आतुरता के साथ पर्वत पर पहुँची। वे क्षण वास्तव में बड़े रोमांचक थे। सैकड़ों भक्त नर-नारी उस समय उपस्थित थे।
पूज्य गणिनी माताजी अपने हर्षाश्रुओं से मानो प्रभु ऋषभदेव के चरण पखार रही थीं और अपने को कृतकृत्य महसूस कर रही थीं। उस समय के दुर्लभ चित्र भी अनेक भक्तों ने व्हाट्सअप आदि के माध्यम से देशभर में प्रचारित किये थे। उन रोमांचक क्षणों को आप इस गीत के माध्यम से जानेंगे-
तर्ज-मेरे गुरुदेव आए………..
ज्ञानमती माता आई मांगीतुंगी तीर्थ में।
मानो माँ ब्राह्मी आई पिता के समीप में।।टेक.।।
सन् उन्निस सौ छियानवे में, मांगीतुंगी आई मात ये।
ऋषभदेव की मूर्ति प्रेरणा, दी माता ने जगी चेतना।।
उन्हीं जिनवर के निकट आई मात तीर्थ पे।
मानो माँ ब्राह्मीआई पिता के समीप में।।ज्ञानमती.।।१।।
प्रतिमा बन अब पूर्ण हुई है, दुनिया में प्रभु जय गूंज रही है।
पहला महोत्सव उसका आया, स्वर्ग के सदृश आनंद छाया।।
उसी उत्सव के लिएआई मात तीर्थ पे।
मानो माँ ब्राह्मीआई पिता के समीप में।।२।।
चातुर्मास के मध्य पंचकल्याणक महोत्सव की व्यापक तैयारियाँ चलती रहीं। स्वस्तिश्री पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के कुशल नेतृत्व में पूरा मांगीतुंगी तीर्थ एवं आसपास लगभग १० किलोमीटर का क्षेत्र देवोपुनीत नगरी के रूप में परिवर्तित होकर अयोध्या के सर्वतोभद्र महल के रूप में सज गया और देखते-देखते सन् २०१६ का वर्ष आ गया।
महोत्सव समिति द्वारा आमंत्रण दिये गये अनेक साधु संघों का पदार्पण दिसम्बर २०१५ से शुरू हो गया। बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज २७ दिसम्बर २०१५ को चतुर्विध संघ के साथ मांगीतुंगी पधारे, महोत्सव कमेटी एवं पूज्य ज्ञानमती माताजी सहित सम्पूर्ण संघ ने पट्टाचार्य श्री का भरपूर अभिनंदन किया। उस समय का दृश्य भी बड़ा भावभीना था, जब आचार्यश्री ने अपनी धर्ममाता पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के साथ प्रथम मिलन के अवसर पर भक्तों से माताजी की वृहत् पूजा करवाई।
पुन: १ जनवरी २०१६ को परमपूज्य आचार्यश्री पद्मनंदि महाराज के संघ का पदार्पण हुआ, उनका धर्मवात्सल्य भी अविस्मरणीय रहा। देखते-देखते २४ जनवरी २०१६, माघ कृ. एकम् के पवित्र दिवस की ऐतिहासिक घड़ी आई, जब जयपुर की नाठा फार्म के कुशल शिल्पी ने भगवान के नेत्रों में पुतली का आकार बनाकर प्रतिमा निर्माण को पूर्णता प्रदान किया, तब प्रभु की जय-जयकारों से आकाश मंडल गूंज उठा।
इस अवसर पर पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी क्या भावना अपने प्रभु के चरणों में व्यक्त करती हैं जानें-
हे तीनलोक के नाथ प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान! जैसे आज आपकी प्रतिमा के नेत्र खोलकर शिल्पी ने प्रतिमा पूर्ण किया है, इसी प्रकार कभी ऐसा दिन आवे कि मेरे ज्ञाननेत्र खुल जावें और मैं केवलज्ञानी परमात्मा बन जाऊँ। धन्य हैं धन्य हैं प्रभु ऋषभदेव और धन्य हैं उनकी प्रतिमा निर्मात्री ज्ञानमती माताजी।
फिर ११ फरवरी २०१६, माघ शुक्ला तृतीया की शुभ घड़ी आ गई और श्रीमती सरिता एम.के. जैन-चेन्नई (अध्यक्ष-भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी) ने भारी महोत्सव के साथ झण्डारोहण किया और महाजिनबिम्ब का पंचकल्याणक महोत्सव महा आयोजनों के साथ सम्पन्न हुआ।
इस महोत्सव में भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य सौ. कुमकुमदेवी-डॉ. पन्नालाल पापड़ीवाल (महामंत्री-मूर्ति निर्माण कमेटी) को प्राप्त हुआ। सौधर्म इन्द्र उत्तराखण्ड-हरिद्वार निवासी श्रेष्ठी श्री जे.सी. जैन एवं सौ. सुनीता जैन बने, धनकुबेर का पद श्री मनोज जैन-सौ. नविता जैन-मेरठ (उ.प्र.) ने प्राप्त किया। इसी प्रकार सभी विशिष्ट पदों को प्राप्त करके अनेक पुण्यशाली भक्तों ने अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया।
महोत्सव में सान्निध्य प्रदान करने वाले १२५ साधु-साध्वियों के दर्शन कर सम्पूर्ण देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु भक्तों ने स्वर्णयुगीन इतिहास के साक्षी बनकर जिस अनन्त पुय का संचय किया है वह लेखनी से परे है।
‘‘ऋषभगिरि के ऋषभदेव’’ की यह काव्यकथा सम्पन्न करते हुए दो शब्दों में आपको बताना है कि-
साधना को सत्य का शृंगार मिल गया।
भावना को पुरुषार्थ का आकार मिल गया।।
अब ज्ञानमती माता की अर्चना फल लेके आई है,
जब पाषाण को इक मूर्ति का आकार मिल गया।।
सब मिलकर बोलें-
तर्ज-देख तेरे संसार की हालत………………..
विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा बनी है आलीशान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।टेक.।।
मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र में।
पर्वत के पाषाण खण्ड में।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माता की प्रेरणा महान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।१।।
ऋषभदेव प्रतिमा प्रगटी है।
गुरुमाता की तपशक्ती है।।
उनका गौरवमय ससंघ सानिध्य मिला है महान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।२।।
इक सौ अठ फुट की यह प्रतिमा।
जिनशासन की अद्भुत गरिमा।।
यह आश्चर्य प्रथम है जग में जैनधरम की शान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।३।।
यह है आयडॅल ऑफ अहिंसा।
भारत की पहचान अहिंसा।।
इसे ‘‘चन्दनामती’’ हृदय से कर लो सभी प्रणाम,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।४।।
श्री रवीन्द्रकीर्ति का समर्पण।
भक्तों का अर्थाञ्जलि अर्पण।।
अमर रहेगा युग युग तक सबका तन मन धन दान,
जय जय ऋषभदेव भगवान।।५।।
विश्व की इस सर्वोच्च प्रतिमा का नाम गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज हो गया-६ मार्च २०१६ को। पुन: विश्व रेकार्ड के रूप में पूरे एक वर्ष तक इस विशाल प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक बिना किसी व्यवधान के चला और लाखों-लाख नर-नारियों ने पंचामृत अभिषेक करके प्राचीन आगम परम्परा को जीवन्त कर दिया। अब भारत की धरती पर सदा-सदा असंख्यों वर्ष काल तक सत्य-अहिंसा-अनेकांत की यह जीवन्त प्रतिमा दिगम्बर जैन प्राकृतिक धर्म एवं भारतीय संस्कृति का ध्वज विश्व के क्षितिज पर फहराती रहेगी। अत: आप ध्यान रखें-
As America is famous by the Statue of Liberty. Paris is famous by Eiffel Tower. Now India will be famous by The Statue of Ahimsa-Lord Rishabhdev.
जय ऋषभदेव बोलो जय जय आदिनाथ-२…………