भगवान ऋषभदेव को फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है।
उसी समय चारों प्रकार के देवों के यहाँ अपने आप बिना बजाये बाजे बजने लगे। इंद्रों के मुकुट झुक गये आदि…..।
दिव्य अवधिज्ञान से इंद्रोें ने प्रभु ऋषभदेव को केवलज्ञान हुआ जानकर अपनी-अपनी दिव्य सेना सजाकर चल पड़े। इधर इंद्र की आज्ञा से कुबेर ने एक क्षणभर में आकाश में अधर दिव्य समवसरण की रचना कर दी। यह फाल्गुन कृष्णा एकादशी ‘महान दिवस’ ‘‘ऋषभदेव शासन जयंती पर्व’’ है। इस दिन व्रत करना चाहिए। अपनी शक्ति के अनुसार उपवास, अल्पाहार या एकाशन आदि करके भगवान के जीवन चरित को पढ़ें। केवलज्ञान कल्याणक की पूजा करें।
इस दिन विशेषरूप से ‘रथयात्रा’ आदि उत्सव-महोत्सव करना चाहिए।
व्रत की विधि-फाल्गुन कृष्णा एकादशी को व्रत करके मंदिर में भगवान ऋषभदेव का अभिषेक करके प्रभु की पूजा करें और समवसरण विधान या ऋषभदेव विधान का अनुष्ठान करें, पुन: निम्न मंत्र का जाप्य करें-
जाप्य-ॐ ह्रीं अर्हं गोमुखयक्ष-चक्रेश्वरीयक्षी-सहिताय श्री- ऋषभदेवतीर्थंकराय नम:। (सुगंधित पुष्पों से १०८ बार मंत्र जपें)