(स्वर का एक भेद) शिरोदेश में स्थित स्वर ।
जिस कर्म के उदय से कानों को प्यारा लगने वाला स्वर होता है वह सुस्वर नामकर्म है तथा जिस कर्म के उदय से गधा एवं ऊंट के समान कर्णों को प्रिय न लगने वाला स्वर होता है वह दु:स्वर नामकर्म है।
स्वर सात होते है- निषाद, ऋषभ, गान्धार, षड्ज, मध्यम, धैवत और पंचम । ये सात स्वर तन्त्री रूप कमङ्ग से उत्पन्न होते हैं । जो स्वर कण्ङ्ग देश में स्थित होता है उसे षड्ज कहते है। जो स्वर शिरोदेश में स्थित होता है उसे ऋषभ कहते है। जो स्वर नासिका देश में स्थित होता है उसे गान्धार कहते है। जो स्वर हृदय देश में स्थित होता है उसे मध्यम कहते है। मुख देश में स्थित स्वर को पंचम कहते है। तालु देश में स्थित स्वर को धैवत कहते है और सर्व शरीर में स्थित स्वर को निषाद कहते है।
हाथी का स्वर निषाद है, गौ का स्वर ऋषभ है, बकरी का स्वर गान्धार है, और गरूड़ का स्वर षड्ज है। क्रौंच पक्षी का शब्द मध्यम है। अश्व का स्वर धैवत है और बसन्त ऋतु में कोयल पंचम स्वर से कूजती है।