मन्त्रशक्ति सर्वमान्य है। विद्या, मणि, मन्त्र, औषध आदि की अचिन्त्य शक्ति का माहात्म्य प्रत्यक्ष देखने में आता है।
मन्त्रो में णमोकार महामंत्र अपराजित व अनादिनिधन मंत्र है जिससे ८४ लाख मंत्रो की उत्पत्ति मानी गयी है अर्थात् यह मन्त्र ८४ लाख मंत्रो का जनक है। पूजा विधानादि में अनेक प्रकार के मंत्र जपे जाते है जिसमें ऋषि मन्त्र भी एक है वह ऋषि मन्त्र इस प्रकार है- सत्यजाताय नम:, अर्हज्जाताय नम:, निग्र्रन्थाय नम:, वीतरागाय नम:, महाव्रताय नम:, त्रिगुप्ताय नम:, महायोगाय नम:, विविध-योगाय नम:, विविधद्र्धये नम:, अड्ड:धराय नम:, पूर्वधराय नम:, गणधराय नम:, परमर्षिभ्यो नमो नम:, अनुपम जाताय नमो नम:, सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे भूपते भूपते नगरपते नगरपते कालश्रमण कालश्रमण स्वाहा, सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु, अपमृत्यु विनाशनं भवतु, समाधिमरणं भवतु ।
इस ऋषि मंत्र को बड़े-२ पूजन विधान जैसे-कल्पद्रुम, सर्वतोभद्र, इन्द्रध्वज, विश्वशांति महावीर विधान, तीन लोक विधान आदि महाविधानों के पश्चात् होने वाली हवन विधि में पढ़ा जाता है तथा घी, धूप, समिधा की आहुति दी जाती है।
पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी लिखित पूजा हवन विधान विधि की पुस्तक में हवनविधि में इस मंत्र का उल्लेख है।