प्रश्न १- नोकृति किसे कहते है?
उत्तर- एक संख्या को नोकृति कहते हैं।
प्रश्न २- कृति किसे कहते है?
उत्तर- किसी शशि के वर्ग या square को कृति कहते है। जो राशि वर्गित होकर वृद्धि को प्राप्त होती है अपने वर्ग में से अपने वर्गमूल को कम करके पुन: वर्ग करने पर भी वृद्धि को प्राप्त होती है उसे कृति कहते है।
प्रश्न ३- एकत्व का लक्षण बताइये?
उत्तर- वद्भावो त्येकत्वस्य लक्षणम् अर्थात् तद्भाव एकत्व का लक्षण है।
प्रश्न ४- अनुप्रेक्षा का लक्षण बताते हुए संख्या बताइये?
उत्तर- किसी बात का पुन: पुन: चिन्तवन करते रहना अनुप्रेक्षा है यह बारह हैं एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ, लोक।
प्रश्न ५- निश्चय नय से एकत्व भावना का लक्षण बताओ?
उत्तर- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र रूप अर्थात् रत्नत्रय रूप धर्म जो इस जीव ने धारण किया था वही लोक में इसका कल्याण करने वाला सहायक होता है। इस भावना में शुद्ध एकपना की ही भावना भाई जाती है।
प्रश्न ६- व्यवहारनय से इसकी क्या परिभाषा है?
उत्तर- व्यवहारनय से यह आत्मा अकेला ही शुभाशुभ कर्म बान्धता है, अकेला ही अनादि संसार में भ्रमण करता है, अकेला ही उत्पन्न होता है, अकेला ही मरता है, अकेला ही अपने कर्मो का फल भोगता है। अर्थात् इसका कोई साथी नहीं है।
प्रश्न ७- विक्रिया का लक्षण व भेद बताओ?
उत्तर- अणिमा, महिमा आदि आठ गुणों के ऐश्वर्य के सम्बन्ध से एक, अनेक, छोटा, बड़ा आदि नानाप्रकार का शरीर करना विक्रिया है वह दो प्रकार की है- एकत्व विक्रिया व पृथक्तव विक्रिया।
प्रश्न ८- एकत्व विक्रिया व पृथक्तव विक्रिया में क्या अन्तर है?
उत्तर- अपेन शरीर को ही सिंह, व्याघ्र, हिरण, हंस आदि रूप से बना लेना एकत्व विक्रिया है और शरीर से भिन्न मकान, मण्डप आदि बना लेना पृथक्तव विक्रिया है।
प्रश्न ९- एकपर्वा विद्या कौन सी विद्या है?
उत्तर- एकपर्वा विद्या मनु, मलंक आदि सोलह निकायों में एक औषधि विद्या है। इन विद्याओं को भगवान ऋषभदेव की दीक्षा के पश्चात उनसे नमि विनमिद्वारा राज्य मांगने पर धरणेन्द्र देव ने उन्हें प्रदान किया।
प्रश्न १०- एकभक्त का लक्षण बताइये?
उत्तर- सूर्य के उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी छोड़कर अथवा मध्यान्हकाल में एक मुहूर्त, दो मुहूर्त, तीन मुहूर्त काल में एक बार भोजन करना एकभक्त मूलगुण है।
प्रश्न ११- एकरात्रि प्रतिमा की परिभाषा क्या है?
उत्तर- तीन उपवास करने के अनन्तर चौथी रात्रि में ग्राम, नगरादिक के बाह्म प्रदेश में अथवा श्मसान, श्र्व दिशा, उत्तर दिशा अथवा चैत्य के सम्मुख मुख करके दोनों चरणों में चार अंगुल प्रमाण का अन्तर रखकर नासिका के अग्रभाग पर यति अपनी निश्चल दृष्टि कर शरीर में ममत्व छोड़ कायोत्सर्ग करता हुआ मन को एकाग्र कर देवादि चार प्रकार के उपसर्गों को सहन करे, भय से गिरे या भागे नहीं सूर्योदय तक वहीं स्थिर रहे वह एकरात्रि प्रतिमा है।
प्रश्न १२- पंचमकालीन एकलबिहारी साधु के लिए मूलाचार में आचार्य कुन्दकुन्द ने क्या कहा?
उत्तर- मूलाचार नामक आचार ग्रंथ में आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने कहा- गमनागमन में, सोने में, उङ्गने बैठने में, कुछ वस्तु के ग्रहण करने में, आहार लेने में, मलमूत्रादि विसर्जन में तथा बोलने आदि क्रियाओं में स्वच्छन्द प्रवृत्ति वाला ऐसी कोई भी मुनि मेरा शत्रु ही क्यों न हो तो भी वह एकाकी विचरण न करे।
प्रश्न १३- एकलव्य की गुणभक्ति का उदाहरण क्यों लिया जाता है?
उत्तर- एकलव्य एक भील था जिसने एक पाषाण स्तम्भ में गुरू द्रोणाचार्य की कल्पना कर उनसे शब्दबेधी धनुर्विद्या सीखी, पुन: एक बार एक कुत्ते को बाण से भरे मुख वाला देख अर्जुन ने द्रोणाचार्य से बताया तब द्रोणाचार्य ने सारी बात सुन उसके पास जाकर गुरूदक्षिणा रूप दाहिनी अंगूठा मांग लिया जिससे वह जीवहिंसा न कर सके । उसने सहर्ष अंगूठा दे दिया और गुरूभक्ति में प्रसिद्ध हुआ।
प्रश्न १४- एकविध ज्ञान का लक्षण बताओ? यह कौन से ज्ञान का भेद-प्रभेद है?
उत्तर- एक प्रकार की वस्तुओं का ज्ञान एकविध ज्ञान है जैसे एक सदृश गेहुंओ का ज्ञान। यह मतिज्ञान का भेद- प्रभेद है।
प्रश्न १५- एकसंस्थान किस वस्तु का नाम है?
उत्तर- तिलोयपण्णत्ति, त्रिलोकसार आदि ग्रन्थों में ८८ ग्रहों का वर्णन आया है जिसमें एकसंस्थान नामका भी एक ग्रह है।
प्रश्न १६- एकान्त का लक्षण बताइये?
उत्तर- वस्तु के जटिल स्वरूप को न समझने के कारण , व्यक्ति उसके एक या दो आदि अल्पमात्र अंगो को जान लेने पर यह समझ बैठता है कि इतना मात्र ही उसका स्वरूप है इससे अधिक कुछ नहीं अत: उसमें अपने उस निश्चय का पक्ष उदित हो जाता है जिसके कारण वह उसी वस्तु के अन्य सद्भूत अंगो को समझने का प्रयत्न करने की बजाय उसका निषेध व पोषक अन्य वादियों के साथ विवाद करने लगता है।
प्रश्न १७- एकान्त के भेद परिभाषा सहित बताइये?
उत्तर- एकान्त के दो भेद हैं- सम्यक व मिथ्याएकान्त। हेतु विशेष की सामथ्र्य से अर्थात् सुयुक्ति युक्त रूप से प्रमाण द्वारा प्ररूपित वस्तु के एकदेश को ग्रहण करने वाला सम्यकनेकान्त है और एक धर्म का सर्वथा अवधारण करके अन्य धर्मों का निराकरण करने वाला मिथ्या एकान्त है।
प्रश्न १८- एकाग्रचिन्ता निरोध का अर्थ क्या है?
उत्तर- अग्र पद का अर्थ मुख है।जिसका एसक अग्र होता है वह एकाग्र है। नाना पदार्थों का अवलम्बन लेने से चिन्ता परिस्पन्दवती होती है उसे अन्य अशेष मुखों से लौटाकर एक अग्र अर्थात् एक विषय में नियमित करना एकाग्रचिन्तानिरोध कहलाता है।
प्रश्न १९- एकीभाव स्तोत्र की रचना किन आचार्य ने कब की?
उत्तर- एकीभाव स्तोत्र की रचना आचार्य वादिराज ने ई १०१० से १०६५ के मध्य एक भक्ति पूर्ण आध्यात्मिक स्तोत्र के रूप में २६ संस्कृत छन्दों में की ।
प्रश्न २०- उस रचना के प्रतिफल में क्या हुआ?
उत्तर- जिनेन्द्र प्रभु की अगाढ़ भक्ति में रचे उस स्तोत्र के पूर्ण होते ही मुनि का कुष्ट रोग दूर हो गया।
प्रश्न २१- एकेन्द्रिय किसे कहते है? इनके कितने प्राण होते है?
उत्तर- वे संसारी जीव जिनके एक स्पर्श इन्द्रिय मात्र हो वह एकेन्द्रिय है। इनके स्पर्श इन्द्रिय, शरीर बल, आयु व श्वासोच्छ्वास ये चार प्राण होते है।
प्रश्न २२- एकेन्द्रिय जाति का लक्षण बताइये?
उत्तर- जिसके उदय से आत्मा एकेन्द्रिय कहा जाता है वह एकेन्द्रिय जाति नाम कर्म है।
प्रश्न २३- इस कर्म का बंध किस प्रकार होता है?
उत्तर-स्पर्शन इन्द्रिय के विषय की लम्पटतारूप से परिणत होने के द्वारा जीव स्पर्शन इन्द्रिय जनक एकेन्द्रिय जाति नामकर्म को बांधता है।
प्रश्न २४- एकेन्द्रिय जीव किसे कहते है?
उत्तर- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पतिकायिक इन पांच प्रकार के जीव निकायों को मन परिणामरहित एकेन्द्रिय जीव कहा है।
प्रश्न २५- एवम्भूत नय किसे कहते है उदाहरण सहित बताइये?
उत्तर- जो वस्तु जिस पर्याय को प्राप्त् हुई है उसी रूप निश्चय करने वाले नय को एवम्भूत नय कहते हैं जैसे जब गमन करती हो तभी गाय है बैठी या सोती हुई नहीं ।
प्रश्न २६- एवकार के कितने भेद हैं नाम बताइये?
उत्तर- निपात अर्थात् एवकार नियामक होता है इसके तीन भेद है-
१ अयोगव्यवच्छेदक
२ अन्ययोगव्यवच्छेदक
३ अत्यन्तायोगव्यवच्छेदक
प्रश्न २७- एषणा की परिभाषा बताइये?
उत्तर- अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का नाम एषणा है।
प्रश्न २८- साधु आहार सम्बन्धी कितने दोषों को टालकर आहार लेते है?
उत्तर- साधु ४६ प्रकार के दोषों से रहित आहार ग्रहण करते है।
प्रश्न २९- एषणा शुद्धि की क्या परिभाषा है?
उत्तर- सूर्य के उदय और अस्तकाल की तीन घड़ी छोड़कर अथवा मध्यान्ह काल में एक, दो, तीन मुहूर्त काल में एक बार ३२ प्रकार की अन्तराय व ४६ प्रकार के आहार सम्बन्धी दोषों को टालकर जो एक बार शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं वह एषणा शुद्धि है।
प्रश्न ३०- एषणा समिति का क्या लक्षण है?
उत्तर- उद्गमादि ४६ दोषों से रहित, भूख आदि मेटना व धर्म साधन आदि से युक्त कृत, कारित आदि नौ विकल्पों से शुद्ध, ठण्डा-गरम आदि भोजन में राग-द्वेष रहित समभाव से भोजन करना एषणा समिति है। उद्गम आदि दोषों से आहार, पुस्तक, उपाधि, वसतिका को शोधने वाले मुनि के शुद्ध एषणासमिति है।
प्रश्न ३१- एकता की महिमा का वर्णन करते हुए तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ में आचार्य उमास्वामी ने क्या सूत्र कहा है?
उत्तर- सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यग्चारित्र इन तीनों की एकता ही मोक्ष का मार्ग है।