एकाग्रता
सफलता के द्वार खोलने में एकाग्रता कुंजी का कार्य करती है। प्रायः एकाग्रता को केवल आध्यात्मिकता या आध्यात्मिक सिद्धि से ही जोड़कर देखा जाता है, लेकिन यह गलते दृष्टिकोण है। एकाग्रता हम्मारे दैनिक जीवन के प्रत्येक स्तर पर उपयोगी होती है। एकाग्रता को शक्ति के साथ मनुष्य किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक शक्ति जुटाने में सक्षम होता है, जिससे कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं रहता है। एकाग्रता किसी भी मनुष्य की समस्त ऊर्जाओं को एक बिंदु पर केंद्रित कर चट्टान जैसे लक्ष्य को फिपलाने की शपता धनान करती है।
एकाग्रता के प्रभाव से जुड़ा स्वामी विवेकानंद का एक दृष्टांत बहुत लोकप्रिय है। कहा जाता है कि भ्रमण के दौरान उनके गुरुभाई प्रतिदिन पुस्तकालय से कुछ किताबें लाकर उन्हें देते थे और स्वामी जी उसी दिन उन किताबों का अध्ययन कर उन्हें वापस कर देते थे। यह देख पुस्तकालय के अधीक्षक को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने इस संबंध में अपना संदेह जताया कि किताबों को सिर्फ देखने के लिए ले जाया जाता है या उनका अध्ययन भी किया जाता है। इसके बाद उनके गुरुभाई ने उस अधीक्षक को एकाग्रता के कारण • स्वामी विवेकानंद की पढ़ने की अद्वितीय क्षमता के बारे में बताया। स्वामी जी ने अपनी उत्कृष्ट एवं असाधारपण एकाग्रता से उनके संदेह को दूर किया। योग दर्शन में एकाग्रता को प्राप्त करने और उसकी तीव्रता बढ़ाने के लिए नियमित अभ्यास एवं आत्म-अनुशासन पर बल दिया गया है। क्षेत्र चाहे कोई भी हो, सफलता के इसी गूढ़ रहस्य को रहीम ने अपने दोहे में व्यक्त करते हुए कहा है कि ‘एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाए।’ अर्थात यदि आप किसी एक कार्य को पूरी एकाग्रता के साथ करते हैं तो एक-एक कर आपके सभी कार्यों का सफल होना सुनिश्चिते होता है। इसके विपरीत यदि सभी कार्यों को एकाग्रता के अभाव में एक साथ करने की कोशिश की जाए तो उन सभी कार्यों में असफल होना तय है।